Pryagraj UP: भगवा और तिरंगे से इतनी परेशानी क्यों है कट्टरपथियों को साहब, ये कोई मिर्ची तो नहीं जिसके लगते ही कटरपंथियों के कान और दिमाग दोनो को ही धुआं- धुआं कर देती है। प्रयागराज के सरायममरेज के मियां का पूरा मनुपुर गांव में श्री हनुमत रामलीला कमेटी की ओर से पिछले 54 वर्षों से रामलीला का मंचन करवाया जा रहा है।रामलीला मैदान के गेट पर भगवा झंडे लगाए गए थे।
कुछ कट्टपंथी और देश के गद्दारों को ये रास नहीं आया और उन्होंने भगवा झंडे को फाड़ने के साथ ही उसे उखाड़ भी दिया ये घटना हुई है
सरायममरेज के मियां का पूरा मनुपुर गांव में बुधवार रात कुछ लोगों ने रामलीला मैदान के गेट पर लगे भगवा झंडा को फाड़ दिया।
Pryagraj UP: मो. फैज और उसको साथियों ने हिंदू देवी-देवताओं, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री पर आपत्तिजनक टिप्पणी करते हुए मियांपुर बाजार को हिंदू विहीन करने की धमकी दी। रामलीला कमेटी के पदाधिकारियों ने विरोध किया तो उनसे गाली-गलौज करते हुए माहौल खराब करने की कोशिश की और साथ ही राम लीला बंद करवाने की धमकी दी।
Pryagraj UP:पुलिस ने कमेटी के विजय कुमार साहू और बजरंग दल के संयोजक बृजेश यादव की शिकायत पर मो. फैज, गुड्डू, वसीम, शाहरुख, अराफात खान, आसिफ अली, अजगर अली उर्फ बोड्डा, मोनिश व डेढ़ सौ अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है और साथ ही छह नामजद आरोपितों को गिरफ्तार कर लिया है।
Pryagraj UP: गांव में एहतियातन पुलिस फोर्स तैनात की गई है।सरायमरेज थानाध्यक्ष तरुणेंद्र त्रिपाठी का कहना है कि छह अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया गया है, जबकि अन्य की तलाश चल रही है।
Pryagraj UP: एसपी गंगा पार अभिषेक अग्रवाल के मुताबिक घटना के संबंध में तहरीर के आधार पर मुकदमा दर्ज किया गया है। गांव में पुलिस फोर्स तैनात की गई है। शांति-व्यवस्था में खलल डालने पर कड़ी कार्रवाई की जाएगा।
Pryagraj UP: बुधवार 12 अक्टूबर को रामलीला मैदान के गेट पर भगवा झंडा लगाया जा रहा था। आरोप है कि इसी दौरान फैज तमाम युवकों के साथ आ गया और भगवा झंडा लगाने से रोक दिया। इसको लेकर विवाद हुआ तो अभियुक्त भगवा झंडा फाड़कर फेंकने लगे।
Pryagraj UP: खबर पाकर सरायममरेज समेत कई थाने की पुलिस मौके पर पहुंची तो झंडा फाड़ने वाले युवक वहां से भाग निकले। खैर ये यूपी है और यहां कोई भी योगी की पुलिस की नजरों से ज्यादा देर तक नहीं बच सकता जल्दी ही योगी कि पुलिस के चंगुल में आते ही ये जिहादी पैरों में गिड़गिडाने लग गए कि साहब छोड़ दो गलती हो गयी।
गौरतलब है कि ओवैसी जी अपने बयानो से कभी भी बाज ही नहीं आते और मुस्लिमों के प्रताणित वाला रोना है उनका कभी खत्म नहीं होता। लेकिन, शायद ओवैसी को सांप सूंघ गया जो इन जिहादियों की करतूतें न तो ओवैसी को दिख रही है और न ही सुनाई दे रही है।
हैरान कर देने वाली बात तो यह है कि जो लोग ये कहतें हैं कि मुस्लिमों को प्रताणित किया जा रहा है। लगता है वो लोग अब बिल में छुप गए हैं और ये पहला मामाला नहीं है जब कट्टपंथियों को भगवा झंडा लगाने पर मिर्ची लगी हो इससे पहले भी हैदराबाद में फलों के ठेले वाले ने भगवा ध्वज लगाया था। तब भी समुदाय विशेष को दिक्कत हुई, पुलिस को ट्विटर से शिकायत करके बुला लिया, पुलिस भी आई और कहा कार्रवाई होगी।
इससे पहले भी नालंदा में भगवा ध्वज लगाने वाले पाँच लोगों पर पुलिसिया केस बनाया गया था और साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश हो हुई थी। आप को बता दें कि ऐसी ही एक घटना जमशेदपुर में दुकान के आगे भगवा पोस्टर पर राम-शिव के चित्रों समेत ‘हिन्दू फल की दुकान’ लिखने पर केस दर्ज हुआ क्योंकि कट्टरपंथियों को इससे दिक्कत हो गई।
ये चंद सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने वाले उदाहरण हैं, जो अब बढ़ते ही जा रहे हैं। एक पूरा गिरोह व्यवस्थित तरीके से हिन्दुओं के प्रतीकों पर उनके सिर्फ हिन्दू होने के कारण आक्रमण कर रहा है। क्योंकि इस देश में बलात्कारी और फसादी मुग़ल शासकों के समय से ले कर गाँधी के दौर तक में जजिया कर देने और ‘अब्दुल भाई को छोड़ दो‘ के नाम पर हत्यारे को बचाने की कोशिशें होती रही है।
इसलिए, हिन्दुओं में हमेशा से अपनी ही श्रद्धा प्रदर्शित करने में एक हीनभावना का दिखना आम सा हो गया। आप अपने कार्यालय ललाट पर तिलक लगा कर जाइए तो आपको ‘मिलिटेंट हिन्दू’ कहा जा सकता है। जबकि तिलक से किसी का कुछ नहीं बिगड़ता, अपनी आत्मशांति के लिए लगाया जाता है।
ये विक्टिम कार्ड खेलना हिन्दुओं में न के बराबर दिखता है। जब तक वाकई परेशान ही न कर दिया जाए, हिन्दू बोलता तक नहीं। जब तक पालघर में दो साधु और एक ड्राइवर भीड़ हत्या का शिकार नहीं हुए, हिन्दू मुखर नहीं हुआ। समुदाय विशेष का चोर भी मरता है तो वो अंतरराष्ट्रीय खबर बन जाती है।
ख़ैर, ऐसे गिनते रहेंगे तो बहुत समय व्यर्थ होगा। पिछले साल जून-जुलाई में समुदाय विशेष से ‘जय श्री राम’ कहलवा कर मारने-पीटने की सारी घटनाएँ झूठी निकलीं, लेकिन कवरेज याद कीजिए कि कैसा था। जुलाई के बाद आए अगस्त में काँवड़ यात्रा पर ‘मजहबी’ इलाके में कितना पथराव हुआ, उसकी खबरें भी सर्च कर लीजिए, और उसकी कवरेज याद कीजिए। बहाने बनाए गए कि वो तो डीजे बजा रहे थे जैसे कि डीजे बजाने पर समुदाय विशेष द्वारा पत्थर मारना जायज हो जाता है!
आज कल नई नौटंकी चली पड़ी है भगवा झंडा लगा रहे हैं हिन्दू, ये गुंडागर्दी है,समुदाय विशेष को चिह्नित करना चाह रहे हैं, उनका व्यवसाय बर्बाद करना चाह रहे हैं। आप सोचिए कि किसी मुस्लिम को आप टोपी लगाने पर ‘गुंडा’ कह सकते हैं क्या? सोचिए कि जब कोई नमाज पढ़ कर आ रहा हो, आपने फोटो खींची और लिख दिया कि कट्टरपंथी गुंडा हिन्दुओं को डरा रहा है!
भगवा झंडे को ले कर बिलकुल वही हो रहा है। बेगूसराय को दलित सब्जीवाले ने अपने ठेले पर लगाया झंडा। उसने बोला कि ‘हिन्दू हूँ, लगाऊँगा’। थूकने वाले कांड के कारण समाज के कई हिस्से में लोग सब्जीवालों को शक की निगाह से देखने लगे हैं। अतः, वो नाम आदि पूछते हैं। इस कारण उस लड़के ने भगवा झंडा लगाया ताकि उसे बार-बार बताना न पड़े।
इस पर समुदाय विशेष की गली में उसे भला-बुरा कहा गया। आप इस बात को पलट दीजिए। समुदाय विशेष का सब्जी वाला टोपी लगाए सामान बेच रहा है, उसे हिन्दुओं को मुहल्ले में उसकी टोपी के कारण लोग गाली देने लगें, धमकाने लगें और उसका वीडियो सामने आ जाए। एक मानव के तौर पर आपको निराशा होगी कि हमारा समाज कहाँ आ गया है। लेकिन क्या बेगूसराय के उस लड़के के लिए वो निराशा आपको मीडिया में दिखी?
इन सारी बातों से साबित यही होता है कि दूसरा विशेष मजहब बस उँगली कर दे कि उसे दिक्कत है इस बात से, और जहाँ उसके तुष्टीकरण में लगी सरकार है, वो हिन्दू पर कार्रवाई करेगी और समुदाय विशेष इस बात का फायदा खूब ले रहा है।
राँची में रहने वाले एक पत्रकार मित्र बताते हैं कि झारखंड में समुदाय विशेष ने इस बात का खूब फायदा उठाया है। वो किसी भी बात की तस्वीर ले कर पुलिस को टैग कर देते हैं, और पुलिस को आदेश आता है कि इस पर कार्रवाई करो। जमशेदपुर फल वाला उसी कारण से केस का हिस्सा बना था।
लम्बे समय तक जमे रहने वाले सत्ताधीशों को जब यह समझ में आ गया कि एकमुश्त वोट पाने के लिए इस्लामी उम्मा की बातों पर ध्यान देना आवश्यक है, तो उन्होंने न सिर्फ समुदाय विशेष का तुष्टीकरण किया, बल्कि ये भी सुनिश्चित किया कि समुदाय विशेष को ‘मोर इक्वल’ ट्रीटमेंट मिले। कहने का तात्पर्य यह है कि ‘अल्पसंख्यक’ शब्द सुनते ही हमेशा एक ही मजहब के लोगों की ही बात होती दिखती है।
अल्पसंख्यकों पर हमला’, ‘अल्पसंख्यकों के लिए योजनाएँ’ आदि आप जब सुनेंगे तो आपको विशेष मजहब वाला ही दिखेगा। जबकि, यह मजहब इस देश की दूसरी सबसे बड़ी आबादी है।
हिन्दू इस देश के करीब आठ राज्यों में अल्पसंख्यक हैं, लेकिन उस पर सुप्रीम कोर्ट में कभी-कभी केस पहुँचता है, जिसे नकार दिया जाता है। जैन, बौद्ध, पारसी, सिख आदि असली अल्पसंख्यक समुदाय को आप शायद ही कभी अपने अल्पसंख्यक होने का विक्टिम कार्ड खेलते हुए देखा होगा?
ये भी पढ़ें…