Widow News: काशी विश्वनाथ की नगरी बनारस के उन घाटों के बीच से जिन पर बारह मासों आस्था की डुबकी लगाई जाती है। उनसे ही निकली दर्द भरी कहानी से आपको रूबरू करायेंगे। विधवाओं का ऐसा दर्द जो आश्रम की चारदीवारों के बीच घुट कर ही रह जाता है। जिससे अभी तक सभी अंजान हैं। शायद आज तक उन विधवाओं के दर्द को किसी ने कुरदने की कोशिश नहीं की। कुछ संस्थाऐं हैं, जिनके सहारे खाना तो मिलता है और पैर पसारने के लिए दुकड़िया भर जमीन भी मिल जाती है। लेकिन दवाई गोली ईलाज के लिए सहारा भीख को ही बनाना पड़ता है।
विधवा शकुंतला की दर्द भरी कहानी
बनारस के एक आश्रम में रहने वाली 73 साल की शकुंतला देवी बताती हैं, कि वह 16 साल से यहां रह रही हैं। शादी के 18 साल बाद कैंसर से उनके पति की मौत हो गई। उसके बाद से देवरानी न तो उन्हें खाने के लिए देती थी, न ही उनकी बेटी को। ऊपर से जब मन करे बेटी की पिटाई भी देती थी। बेटी को लेकर शकुंतला अपने भाई के पास चली गई।
Widow News: आगे शकुंतला बताती हैं, मैं तो जैसे-तैसे दुख झेलकर भी गुजारा कर लेती, लेकिन बेटी के साथ जो मारपीट हो रही थी, वो मुझसे देखा नहीं जाता था। मैं तो अपने भाई को बिजली का बिल भी देती थी। इतना ही नहीं घर बनवाने के लिए उसे 5 हजार रुपए भी दिए, लेकिन जब बेटी 15 साल की हुई, तो भाई को लगने लगा कि इसकी शादी भी करनी पड़ेगी, तो उन्होंने मुझे और बेटी को धक्के मारकर घर से निकाल दिया।
पीड़ा ने शकुंतला की आंखों के आंसू तक सुखा दिए थे। आगे बोला, जो पढ़ी लिखी हैं, वे तो फिर भी कुछ कर लेती हैं, लेकिन हमारे जैसों की जिंदगी तो मिट्टी है। हम क्या कर सकते? कोई चार लात मारेगा तो रोकर रह जाएंगे। आश्रम में भी हमें जैसा रखा जाता है, वैसी जिंदगी काटते हैं। और क्या कहूं, इतना ही है कि हम विधवाओं की कोई जिंदगी नहीं है। बस मौत के इंतजार में जी रहे हैं।
Widow News: शकुंतला ऐसी अकेली महिला नहीं ऐसी हजारों विधवा महिलाऐं अपने दुखों के पहाड़ों को समेटे बनारस में अपना जीवन आश्रमों का चारदीवारों के बीच काट रही हैं, जिनकी पीड़ा को सुनने वाला कोई नहीं है। केवल पीड़ा की वजह यही है, विधवा हो जाने के बाद घर से प्रताड़ित कर निकाल दिया जाना। जो अब बनारस जैसी धर्म नगरी में भीख आदि मांग कर अपने जीवन दिनों को पूरा कर रही हैं।