RSS: राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की स्थापना के 97 वर्ष पूरे होने पर नागपुर में आयोजित कार्यक्रम के मंच पर पहली बार महिला मुख्य अतिथि को बुलाकर संघ ने पूरे विश्व को एक बड़ा संदेश दिया है। अपने सबसे बड़े मंच पर महिला मुख्य अतिथि को बुलाकर संघ ने न सिर्फ उन विरोधियों के मुंह पर तमाचा मारा है जो संघ पर महिला विरोधी होने का आरोप लगाते हैं बल्कि विश्व को यह संदेश भी दिया है कि नारी ही हमारी शक्ति है।
इस बार संघ ने अपनी स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में एख ऐसा महिला संतोष यादव को मंच पर आमंत्रित किया, जिसने माउंट एवरेस्ट को दो बार फतह किया है। ये एकमात्र ऐसी महिला हैं, जिन्होंने दो बार एवरेस्ट फतह किया है। मंच से लोगों को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि संतोष यादव ने कहा “पूरे भारत ही नहीं, पूरे विश्व के मानव समाज को में अनुरोध करना चाहती हूं कि वो आएं और संघ के कार्यकर्ताओं को देखें। योह शोभनीय है, एवं प्रेरित करने वाला है।
RSS: वहीं कार्यक्रम के दौरान आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने देश की निरंतर बढ़ती जनसंख्या पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि जनसंख्या नियंत्रण और धर्म आधारित जनसंख्या असंतुलन ऐसे मुद्दे हैं, जिसे लंबे समय तक नजरंदाज नहीं किया जा सकता। भागवत ने आगे कहा, कि जो सारे काम पुरुष करते हैं, वह महिलाएं भी कर सकती हैं। लेकिन जो काम महिलाएं कर सकती हैं, वो सभी काम पुरुष नहीं कर सकते। महिलाओं को बराबरी का अधिकार, काम करने की आजादी और फैसलों में भागीदारी देना जरूरी है।
अच्छे करियर के लिए इंग्लिश एजुकेशन जरूरी है, यह सत्य नहीं – भागवत
हम हमेशा रोना रोते रहते हैं, कि हमारी मातृभाषा के साथ अन्याय हो रहा है। अब नई शिक्षा पॉलिसी में ऐसी मातृभाषाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है। लेकिन क्या हम अपने बच्चों को ऐसे संस्थानों में पढ़ने के लिए भेज रहे हैं जो मातृ भाषा में शिक्षा मुहैया कराता है? एक मिथक है कि अच्छा करियर के लिए इंग्लिश एजुकेशन जरूरी है। यह सत्य नहीं है। अगर हम देश के बड़े लोगों को देखें तो करीब 80 फीसदी ऐसे हैं, जिन्होंने ऐसे संस्थानों से मैट्रिक तक पढ़ाई की है, जो उनकी मातृभाषा में शिक्षा मुहैया कराते हैं।
RSS: इस फैक्ट और नई शिक्षा नीति के बावजूद अगर हम अपने बच्चों को मातृ भाषा में शिक्षा देने वाले संस्थानों में नहीं भेजेंगे तो क्या ये पॉलिसी कभी सफल होगी? जब तक अभिभावक बच्चों को यह बताते रहेंगे कि उनकी जिंदगी का मकसद पढ़ना और अच्छा पैसा कमाना है, भले उन्हें यह पसंद हो या नहीं.. तब तक हमें देश में संस्कारवान और जिम्मेदार नागरिक नहीं मिलेंगे। वह केवल पैसा बनाने वाली मशीनें रहेंगे।
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