Vrindavan: सूरज ढ़लते ही निधिवन हो जाता है खाली, श्री कृष्ण करते हैं रास लीला

निधिवन

Vrindavan: मथुरा का नाम आते ही लोगों को भगवान श्रीकृष्ण की याद आ जाती है। इस ब्रजभूमि की रज में हर कोई रमा हो जाना चाहता है। भगवान श्री कृष्ण की यह जन्मभूमि हर किसी को प्रभावित करती है। जन्मभूमि घूमने विदेशों से तमाम लोग आये और वह ब्रज की रज में ऐसे घुल गये कि वापिस लौटे ही नहीं पूरा जीवन भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में गुजारने का प्रण ले लिया।

मथुरा-वृंदावन का नाम आते ही आ जाती है श्रीकृष्ण की याद

मथुरा-वृंदावन का नाम जहां आता है, वहां भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी का स्मरण होता है। देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया से भक्त यहां मन में आस्था और सच्ची श्रद्धा के साथ पहुंचते हैं। ये वही स्थान है जहां भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ और उनका बचपन बीता। यहीं पर भगवान ने प्रेम और भक्ती के साथ जिन्दगी जीने का संदेश दिया।

Vrindavan: कृष्ण की नगरी मथुरा वृंदावन अब धार्मिक महत्व के साथ-साथ मुख्यमंत्री योगी की पहल पर पर्यटन नगरी के रूप में भी विकसित हो रही है। दूर दराज से भक्त ये देखने के लिए पहुंचते है कि आखिर कृष्णा कहां रहते थे, कहां उनका बचपन बीता, किस जगह पर भगवान ने लीलाएं दिखाईं और आज भी भगवान यहां मौजूद हैं।

आज भी श्रीकृष्ण राधा रानी के साथ करते हैं रास लीला

बताते हैं कि निधिवन में आज भी राधा रानी के साथ श्रीकृष्ण रास लीला करते हैं। सूरज ढलते ही निधिवन को खाली करवा दिया जाता है। वहां मौजूद तुलसी गोपियों का रूप धारण कर लेती हैं। यहां तक की पशु-पक्षी भी निधिवन से अपना स्थान छोड़कर चले जाते हैं। ये भी मान्यता है कि जिसने भी छुपकर भगवान को देखने की कोशिश की, वो भगवान के तेज को बर्दाश्त नहीं कर पाया। निधिवन में ही हर उस शख्स की समाधि मौजूद है।

Vrindavan: शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि भगवान कृष्णा के माता पिता ने तीर्थों के दर्शन करने की इच्छा जाहिर की, तो भगवान कृष्ण ने सभी तीर्थों से आह्वान किया और कृष्णा के आह्वान पर सभी तीर्थ ब्रज में प्रकट हुए। आज भी ब्रज में बद्रीनाथ केदारनाथ समेत सभी तीर्थ मौजूद हैं। इसलिए लोग बड़ी संख्या में लोग मोक्ष की कामना लिए यहां आते हैं और अपने जीवन को कृष्णा भक्ति में समर्पित कर देते है।

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By Susheel Chaudhary

मेरे शब्द ही मेरा हथियार है, मुझे मेरे वतन से बेहद प्यार है, अपनी ज़िद पर आ जाऊं तो, देश की तरफ बढ़ते नापाक कदम तो क्या, आंधियों का रुख भी मोड़ सकता हूं ।