जाट वह समुदाय है जो अन्न उगाकर देश का पेट भरने के साथ ही सीमा पर खड़ा रहकर अपने देश की रक्षा भी करता है , जाट समाज के महापुरुषों की बात की जाए तो वह जाट रामलाल खोखर ही थे जिन्होंने मोहम्मद गौरी की गर्दन काट मौत के घाट उतारा था, वह जाट महाराजा जवाहर सिंह ही थे जिन्होंने दिल्ली के लाल किले से फाटक उखाड़ कर दिल्ली को फ़तह किया था।
वह वीर गोकुला जाट ही थे जिन्होंने मुगल शासक औरंगजेब की सत्ता की नींव हिला डाली थी। वह रामलाल ही थे जिन्होंने मुगल बादशाह अकबर की कब्र खोदकर उसकी चिता जलाई थी, वह महाराजा दादा सर छोटू राम ही थे जिन्होंने भाखड़ा बांध का निर्माण कराया था।
इन सभी जाट महापुरूषों के साथ ही हिंदू हृदय सम्राट जाट महाराजा सूरजमल हों चाहे हों किसानों के मसीहा व भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह इन सभी के नाम आज भारतीय इतिहास के पन्नों से लगभग गुम से हो चुके हैं, इतिहास के पन्नों में उतने नहीं छपे हैं जितना छपने चाहिए थे। इन सभी जाट महापुरूषों का ज़िक्र इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि इन महान हस्तियों को पुष्प अर्पित करके जाट समुदाय आज का दिन अंतरराष्ट्रीय जाट दिवस के रूप में मनाते हैं।
आपको ये भी बता दें कि वर्तमान समय में दुनिया का ऐसा कोई देश नहीं है जहां पर जाट समुदाय के लोग ना रहते हों, इसलिए ही अंतरराष्ट्रीय जाट दिवस दुनिया के अलग–अलग हिस्सों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। हम अंतरराष्ट्रीय जाट दिवस मनाने वाले देशों की बात करें तो उनमें सबसे पहले भारत का नाम आता है, क्योंकि सर्वाधिक आबादी भारत में ही निवास करती है। उत्पत्ति भी भारत देश से हुई है ऐसा माना जाता है।
दरअसल 13 अप्रैल को जाट दिवस मनाने के लिए रूपरेखा समाज के प्रबुद्ध जनों द्वारा वर्ष 2014 में तय की गई थी। वर्ष 2015 से संपूर्ण भारत के साथ–साथ पूरी दुनिया में भी 13 अप्रैल को यह दिवस मनने लगा।
सन् 1857 के गदर का इतिहास तो पूरा ही मंगल पाण्डे, नाना साहिब, टीपू सुलतान, तात्या टोपे और रानी लक्ष्मीबाई के इर्द–गिर्द घुमाकर छोड़ दिया, लेकिन जब जाटों का नाम आया और उनकी बहादुरी की बात आई तो इन साम्यवादी और ब्राह्मणवादी लेखकों की कलम की स्याही ही सूख गई। मुगलों के अत्याचारों से बगावत हो या 1805 में अंग्रेज सेना से युद्ध। हर मैदान को जाटों ने जज्बे से जीता है।
इतिहास गवाह है कि जाटों ने चार महीने तक अंग्रेजों के आंसुओं का पानी कलकत्ता की हुगली नदी के पानी में मिला दिया था। सन् 1805 में भरतपुर के महाराजा सूरजमल के पुत्र महाराजा रणजीत सिंह की चार महीने तक अंग्रेजों के साथ जो लड़ाई चली वह अपने आप में जाटों की बहादुरी की मिशाल और भारतीय इतिहास का गौरवपूर्ण अध्याय है। अंग्रेजी सेनाओं ने 13 बार इस भरतपुर के किले पर हमला किया और हमेशा उसे मुँह की खानी पड़ी।
भरतपुर की इस लड़ाई पर किसी कवि ने लिखा था –
हुई मसल मशहूर विश्व में, आठ फिरंगी नौ गोरे,
लड़ें किले की दीवारों पर, खड़े जाट के दो छोरे।
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