Modern Family: दिल्ली की सड़क, पार्क, बस स्टैंड, मेट्रो स्टेशन आदि के बाहर जमा भीड़ के बीच सिगरेट के धुंए से अपनी जवानी का छल्ला बनाने वाली या क्लब, बार आदि में प्याले तोड़ने वाली लड़कियों ने मानो आजादी के मायने बदल दिए हैं। ये देश की युवा लड़कियां आजादी के नाम पर अय्याशी काटती नजर आती हैं। ये भले ही हमारे देश की संस्कृति के खिलाफ हो लेकिन इन्हें देखकर ऐसा लगता है जैसे बड़े बाप की औलादें या फिर मॉडर्न मां-बाप अपनी इन लड़कियों को इस तरीखे की अय्यासी कटवाने को ही आजादी देना समझते हैं। शायद!
जब ये लड़कियां कभी रोड किनारे अर्ध नग्न अवस्था में बेसुध तो कभी मृत अवस्था में बड़े फ्रिज के अदंर, कभी बंद शूटकेस तो कभी श्रद्धा की तरह 35 टुकड़ों में पाई जाती हैं। मेरे विचारों से आप सहमत या असहमत भी हो सकते हैं, लेकिन दुख होता है यह सब देखकर कि जिस पिता द्वारा अपनी जवान बेटी को आत्मरक्षा के गुरू सिखाने चाहिए उस उम्र में बेटी की रील बनाने के लिए कैमरा करने में तथाकथित पिता व्यस्त हैं।
Modern Family: फिर यही कम उम्र वाली लड़कियां रील के जरिए भारतीय संस्कृति की धज्जियां उड़ाते हुए गांव की लड़कियों को गंवार बोलने से नहीं चूकतीं। इतना ही नहीं दिल्ली की सड़कों पर शॉर्ट कपड़े पहनकर दिन-रात घूमने वाली और खुद को ओपन माइंडेड कहने वाली लड़कियां जब किसी अब्दुल, आफताब के प्रेम जाल में फंस जाती हैं तो वहीं मां-बाप के समझाने पर उन्हें न सिर्फ आजादी छीनने के लिए जिम्मेदार ठहराती हैं बल्कि संविधान के अनुच्छेदों का बखान करने से भी नहीं चूकतीं।
एक तरफ पूरा विश्व हमारे देश की सनातन संस्कृति को अपना रहे है वहीं देश का तथाकथित पढ़ा लिखा समाज शर्म लिहाज को त्यागकर अपनी संस्कृति को धज्जियां उड़ाने में जुटा हुआ है। ऐसा हर रोज अधिकांश मेट्रो सिटी में देखने को मिलता है। गलती उन लड़कियों कि नहीं जो ऐसा करती हैं। इसके लिए दोषी वह मां-बाप हैं जिन्होंने पढ़ाई लिखाई के नाम पर इतनी आजादी दे दी कि वह शहरों की सड़कों पर शॉर्ट कपड़ों में घूमने और खुलेआम नशा करने को ही असली आजादी समझने लगीं हैं।
Modern Family: जब भी मैं कभी ऐसा दृश्य दिल्ली एनसीआर में देखता हूँ तो उन लड़कियों को कम उनके मां-बाप को ज्यादा कोसता हूं जिन्होंने मॉर्डन होने की आड़ में अपने बच्चों को बर्बादी के लिए छुट्टा छोड़ दिया और याद करता हूं गांव की उन लड़कियों को जो न सिर्फ बंद कमरे या खुली छत से रात-दिन पढ़ाई करके अपने मुकाम को हासिल करती हैं बल्कि अपनी मां के साथ घर के काम में हाथ बंटाकर अपनी सभ्यता और संस्कृति को भी बचाए रखती हैं, लेकिन दुखद इन्ही गांव की बेटियों को मेट्रो सिटी का पढ़ा-लिखा समाज गंवार बोल देता है।
देश की संस्कृति को बचाने के लिए किसी कानून की नहीं बल्कि सभ्य समाज की जरूरत है और अपनी फूहड़ता से माहौल को गंदा करने वालों पर कोई कानून कार्रवाई नहीं बल्कि सामाजिक बहिष्कार करने की जरूरत है। अगर इस पर सामाजिक संगठनों के साथ जागरुक लोगों ने ध्यान नहीं दिया तो इस देश में तालिबानी जैसा शासन आने में देर नहीं लगेगी जहां लड़कियों का घर से निकलना तो दूर शरीर का एक अंग दिखाई देने पर भी सजा दे दी जाती है।
Modern Family: धिक्कार है उस स्वाति मालीवाल जैसी लीब्राण्डी महिला को जो महिला अधिकारों की आड़ पर में अपने पिता पर यौन शोषण जैसे गंभीर आरोप लगाने से भी नहीं चूकती। आए दिन ऐजेंडे के तहत महिलाओं की आजादी छीनने को लेकर सरकार को घेरने वाली स्वाती मालीवल ने क्या कभी भारतीय संस्कृति की खुलेआम धज्जियां उड़ाने वाली लड़कियों के खिलाफ बोला?
नशे में डूबकर, नग्नता फैला रहीं महिलाओं के खिलाफ बोला? मां-बाप की इज्जत को सिगरेट के धुंए से छल्ला बना रही महिलाओं के खिलाफ बोला है? आप सभी को इस मुद्दे पर न सिर्फ विचार करना चाहिए बल्कि समाज को स्वस्थ व सनातन संस्कृति को बचाए रखने के लिए ऐसी महिलाओं का सामाजिक बहिष्कार भी करना चाहिए।