आजादी की कहानी: महान क्रांतिकारी भगत सिंह की अलीगढ़ से जुड़ी कहानी बेहद रोचक है। भगत सिंह की अलीगढ़ से बहुत कुछ यादें जुड़ी हुई हैं। जब खबर इंडिया दिल्ली से चलकर अलीगढ़ के टप्पल के समीप स्थित गांव शादीपुर पहुंचा जहां क्रांतिकारी भगत सिंह अपना नाम बदल बलवंत सिंह रखकर करीब 18 माह तक बच्चों को पढ़ाया था। किसी को भनक तक नहीं लगी थी कि बलवंत सिंह ही भगत सिंह हैं।
भगत सिंह कैसे आये शादीपुर?
गांव शादीपुर के ठा. टोडर सिंह महान क्रांतिकारी थे। वह कानपुर में महान क्रांतिकारी और पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी से मिलने जाया करते थे। वहां देश को आजाद कराने के लिए रणनीति बनाई जाती थी। बात 1929 के करीब की है। ठाकुर टोडर सिंह कानपुर में बैठक में थे। उसी बैठक में भगत सिंह भी थे।
बताते हैं, कि गणेश शंकर विद्यार्थी ने सरदार भगत सिंह को कुछ दिनों के लिए अलीगढ़ में रहने को कहा। इस पर ठा. टोडर सिंह भगत सिंह को अपने साथ लेकर गांव शादीपुर आ गए। अंग्रेजों तक इसकी सूचना न पहुंचे इसलिए उन्होंने गांव से काफी दूर भगत सिंह को रहने की व्यवस्था की। भगत सिंह ने ठाकुर टोडर सिंह से कहकर स्कूल खुलवाया, जिसका नाम नेशनल स्कूल रखा।

आज भी मौजूद है वह स्कूल लेकिन अब खंडहर में तब्दील हो गया है, यहां पर उन्होंने अंग्रेज सैनिकों से मोर्चा लेने के लिए लोगों को बम बनाना भी सिखाया करते थे। वह कुआं भी अब खंडहर में तब्दील हो गया है, जिस पर भगत सिंह नहाया करते व कसरत किया करते थे।
माँ का बहाना लेकर भारत माँ को आजाद कराने गये थे भगत सिंह
भगत सिंह 18 माह शादीपुर में रहने के साथ उन्हें गुलामी की जंजीरों में लिपटी भारत माँ को आजाद कराने का खयाल लगातार कोंध रहा था। इसीलिए भगत सिंह ने शादीपुर से जाने का प्लान बनाया वैसे उनको पता था ऐसे कोई नहीं जाने देगा कोई बहाना लिया जाये। यह बात 1929 की है। भगत सिंह ने ठा. टोडर सिंह से झूठ बोला-कहा उनकी माताजी की तबीयत खराब है और वह उन्हें देखकर लौट आएंगे।

आजादी की कहानी: माँ की बीमार होने की बात सुन ठा. टोडर सिंह ने भगत सिंह को खुर्जा स्टेशन छुड़वाने की व्यवस्था की। उनके साथ गांव के एक विश्वास पात्र को भेजा। मगर, भगत सिंह कानपुर की ओर जाने वाली ट्रेन पर बैठकर निकल गए। उस व्यक्ति से कहा कि उनकी माँ बीमार नहीं हैं, बल्कि भारत माता को आजाद कराने जा रहे हैं, ठा. टोडर सिंह को बता देना कि, वह अब भारत माता को आजाद कराकर ही लौटेंगे। 23 मार्च 1931 को जब भगत सिंह और उनके साथी राजगुरु, सुखदेव को फांसी दी गई तो शादीपुर गांव स्तब्ध रह गया।