Chennai: कल्याणी ने बताया, कि मेरा जन्म चेन्नई के विशुद्ध ब्राह्मण परिवार में हुआ। बचपन में मैं भी सामान्य बच्चों की तरह थी। लेकिन 3 साल की होने तक मैं पैरों को घसीट कर चलती। बाकी बच्चों की तरह अपने पांव पर नहीं खड़ी हो पाती। मेरे पेरेंट्स मुझे लेकर शहर भर के डॉक्टरों के चक्कर लगाते ताकि मैं चल सकूं। डॉक्टर्स ने मुझे चलने में सहारा देने के लिए कैलीपर्स लगाए। इसके बावजूद भी मैं ढंग से खड़ी नहीं हो पाती थी।
काफी जांच-पड़ताल के बाद पता चला कि मैं ड्वार्फ हूं। ड्वार्फनेस को बौनापन भी कहते हैं। साल 2009 में मेरी हेल्थ रिपोर्ट्स से बता चला, कि मुझे बोन टीबी है, फिर से ऑपरेशन किया गया और अब मेरी रीढ़ की हड्डी रॉड और स्क्रू के भरोसे है। मैंने एमएनसी में 17 से अधिक वर्षों तक काम किया और अपने नेतृत्व से एचआर डिपार्टमेंट में बहुत कुछ सीखा।
मेरे पापा ने मुझसे हमेशा कहा कि अपनी काबिलियत से अपनी जगह बनाओ। हम 3 भाई बहनों के लिए एक रूल था। जिसके सबसे अच्छे नंबर आएंगे उसकी पॉकेट मनी हर साल बढ़ेगी। मैं जी-जान से पढ़ाई में जुटी रहती। इस बीच कई मेडिकल प्रॉब्लम कि वजह से मुझे हॉस्पिटल में रहना पड़ता। 7 वीं और 10 वीं क्लास में मुझे हॉस्पिटल में रहना पड़ा।
3 बच्चों के बाप से कराना चाहते थे शादी
कल्याणी ने आगे बताया, कि मेरे रिश्तेदार मेरे लिए एक ऐसे आदमी का रिश्ता लेकर आए, जिसके 3 बच्चे थे और बीवी की डेथ हो गई थी। उनका कहना था, कि आदमी पढ़ा-लिखा तो खास नहीं है लेकिन धन-दौलत अच्छी है, मेरी जिंदगी संवर जाएगी। दरअसल, मेरी शादी करवाने के बहाने मेरे रिलेटिव अपना उल्लू सीधा करना चाहते थे। उन्हें लगता था कि मेरे पेरेंट्स उनका अहसान मानेंगे और उस विधुर इंसान से उन्हें कोई सरकारी कॉन्ट्रैक्ट चाहिए था वो मिल जाएगा।
Chennai: उस आदमी को एक ऐसी बीवी चाहिए थी, जो पढ़ी लिखी हो और उनका घर बार संभाल सके। मैं उनके इरादे भांप चुकी थी और शादी नहीं करना चाहती थी। मैंने पूछा, कि शादी तो मैं कर लूं लेकिन पढ़ा-लिखा और मेरी बराबरी का लड़का होना चाहिए। आप मेरी टक्कर का लड़का लाइए तब मैं शादी करूंगी। मेरे पेरेंट्स मेरी बात सुन कर हंसने लगे।
कई ऑपरेशन हुए, बिस्तर पर समय बिताया
कल्याणी ने ये भी बताया, कि धनुष के आकार का पैर होने की वजह से मेरे कई ऑपरेशन हुए। मैं 3 महीने तक लगातार बिस्तर पर रही। मुझे खड़ा होना भी नहीं आता था। ऐसे में मेरे लिए अपने पैरों पर खड़ा होना भी मेरे लिए टास्क था। लेकिन मैं जीवटता से भरी हुई हूं, ये मेरे पेरेंट्स समझ चुके थे। 3 साल की उम्र तक मैं कभी कुर्सी, कभी दीवार के सहारे चलने की कोशिश करने लगी थी।
Chennai: कई रिश्तेदार कहने लगे थे, कि बार-बार बच्ची पर पैसे खर्च कर आप पैसे बर्बाद ही कर रहे हैं। अपनी बच्ची को बचा कर रखिए आप तो इतना अच्छा कमा ही रहे हैं। इन सबके बावजूद मेरे पेरेंट्स मुझे चलने के लिए काफी मोटिवेट करते थे। लोग कहते-इसे घर पर रखो ताकि सेफ रहे। मेरे पापा इसके खिलाफ थे। उनका कहना था कि मैं हमेशा इसके लिए उपलब्ध नहीं रहूंगा, इसलिए मुझे मेरी बच्ची को मजबूत बनाना है ताकि वो अपने लिए खड़ी हो सके।
विज्ञान की अच्छी विद्यार्थी रही कल्याणी
कल्याणी ने बताया, कि मैं साइंस की अच्छी स्टूडेंट्स थी। 10वीं के बाद मैं साइंस साइड लेना चाहती थी क्योंकि मुझे केमिकल इंजीनियरिंग करनी थी। इसके लिए मैंने केंद्रीय स्कूल बोर्ड से लिखित में परमिशन भी मांगी, लेकिन नहीं मिली। 10 वीं के बाद मुझे साइंस नहीं दी गई, यह मुझे अच्छा नहीं लगा। इसके बाद पापा का ट्रांसफर दूसरे शहर में हुआ। मैंने आगे कॉमर्स लिया। भाई -बहन जॉब करने लगे थे और मैं अपने भविष्य के लिए सपने संजो रही थी। मैं कंप्यूटर ट्रेनिंग के लिए कई जगह गई लेकिन वहां मुझे ये कहकर मना कर दिया गया कि आपकी हाइट कम है।
Chennai: पापा ने अपने कार्यालय से पैसे निकालकर मेरे लिए कंप्यूटर खरीदा और बोला घर पर बैठकर सीख ले, लेकिन मैं बाहर जाकर सीखना चाहती थी। मेरे घर के बगल में एक कंप्यूटर इंस्टीट्यूट था जो एक छोटे से गैराज में खुला था। मैंने वहां पर बात की। इंस्टीट्यूट के ओनर से मैंने कहा मैं आपको इंग्लिश सिखाऊंगी और आप मुझे कंप्यूटर। उन्हें ये बात पसंद आई और वो मुझे सिखाने के लिए राजी हो गए। मैंने कंप्यूटर की बेसिक नॉलेज ली।
डायरेक्टर बन संवार रही दिव्यांगजनों का भविष्य
Chennai: मैंने IDEA HR-डायरेक्टर के तौर पर ज्वाइन किया। यहां हम दिव्यांग लोगों की काउंसलिंग करते हैं, उन्हें उनकी क्षमता के अनुसार स्किल सिखाते हैं , ट्रेनिंग देते हैं, बिजनेस स्किल सिखाते हैं, बिजनेस डीलिंग और मार्केट की समझ भी पैदा करते हैं। जो दिव्यांगजन स्किल्ड हैं उन्हें हम कम्पनी में नौकरी दिलाने के लिए तैयारी करवाते हैं। अब हम भारत के दक्षिण क्षेत्र में भी खुद को लॉन्च करने की तैयारी कर रहे हैं।
ठोकरें ही आपको जीना सिखाएंगी
Chennai: कल्याणी ने कहा, कि मैं अन्दर-अन्दर घुट कर नहीं मर सकती। मेरी विनम्रता, मेरी एजुकेशन मेरी पूंजी हैं। मैं हमेशा लोगों को घर से बाहर निकलकर काम करना सिखाती हूं ताकि घर से बाहर जो एक्सपीरियंस मिलता है ठोकरें जितना सिखाती हैं उतना आप घर में रहकर नहीं सीख सकते।
Written By–Swati Singh