HeerabenModi: अनपढ़ हीराबा ने बच्चों को पढ़ाने के लिए धोये थे बर्तन, मोदी से कहा लगता है तुम कुछ अच्छा काम कर रहे हो

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HeerabenModi: पीएम नरेंद्र मोदी ने 18 जून 2022 को अपनी मां हीराबेन का 100 जन्मदिन मनाया था। जन्मदिन पर पीएम मोदी ने अपनी मां के ऊपर के लेख लिखा था। जिसमें ये कुछ बातें लिखी थीं। हीराबेन अनपढ़ गृहणी थीं, लेकिन वह अपने बच्चों को शिक्षित देखना चाहती थीं। हीराबा ने परिवार का खर्चा उठाने के लिए दूसरों के घर बर्तन भी धोये थे। अब हीराबेन नहीं रहीं, लेकिन उनसे जुड़ी बातें लोगों के जहन में आज भी जिंदा हैं।

पीएम मोदी ने अपने लेख में क्या लिखा?

मां की उम्र की शताब्दी होने पर अपने लेख में पीएम मोदी ने लिखा था, कि घर चलाने के लिए दो चार पैसे ज्यादा मिल जाएं, इसके लिए मां दूसरों के घर के बर्तन भी मांजा करती थीं। समय निकालकर चरखा भी चलाया करती थीं, क्योंकि उससे भी कुछ पैसे जुट जाते थे। कपास के छिलके से रूई निकालने का काम, रुई से धागे बनाने का काम, ये सब कुछ मां खुद ही करती थीं। उन्हें डर रहता था कि कपास के कांटें हमें चुभ न जाएं।

HeerabenModi: लेख में आगे लिखा, कि मां की 15-16 साल की उम्र में शादी हो गई थी। शादी के बाद वो महेसाणा जिले वडनगर में रहने लगी थीं। आर्थिक तंगी और पारिवारिक वजहों से मां तो कभी पढ़ाई नहीं कर सकीं, लेकिन मां चाहती थीं कि उनके सभी बच्चे पढ़ाई करें।

मोदी ने 7वीं तक की पढ़ाई वडनगर के एक प्राइमरी स्कूल में की। परिवार के पास इतने पैसे नहीं थे, कि स्कूल की फीस दी जा सके, लेकिन मां ने न तो हार मानी, न ही किसी से पैसे उधार लिए। हर बार वो कुछ ज्यादा काम करके स्कूल की फीस चुकाती रहीं।

उस वक्त मोदी के पास स्कूल पहनकर जाने के लिए सिर्फ एक ड्रेस थी। ऐसे में जब भी मोदी की ड्रेस फट जाती तो मां हीराबेन किसी और रंग के कपड़े का अस्तर लगाकर उसे सिल देती थीं, ताकि मोदी की पढ़ाई न रुके।

हीराबा ने कहा था, तुम कुछ अच्छा कर रहे हो..

पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने लेख में ये भी लिखा, कि जब मैं संगठन में काम करता था, ज्यादा व्यस्त होने की वजह से परिवार के संपर्क में बहुत कम रह पाता था। उस दौरान मेरे बड़े भाई मां को केदारनाथ ले गए। वहां स्थानीय लोगों को ये बात पता चल गई कि नरेंद्र मोदी की मां आ रही हैं।

HeerabenModi: वे सड़कों पर बुजुर्ग महिलाओं से पूछते रहे कि क्या वे नरेंद्र मोदी की मां हैं। अंत में वे मां से मिले। उन्हें कंबल और चाय दी। केदारनाथ में उनके ठहरने की आरामदायक व्यवस्था की। बाद में जब वह मुझसे मिलीं तो बोलीं ‘ऐसा लगता है कि तुम कुछ अच्छा काम कर रहे हैं, क्योंकि लोग तुमको पहचानते हैं।

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By Susheel Chaudhary

मेरे शब्द ही मेरा हथियार है, मुझे मेरे वतन से बेहद प्यार है, अपनी ज़िद पर आ जाऊं तो, देश की तरफ बढ़ते नापाक कदम तो क्या, आंधियों का रुख भी मोड़ सकता हूं ।