Shaheed Divas: भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू के शवों को अधजले छोड़कर भागे थे अंग्रेज, 12 घंटे पहले दे दी थी फांसी

जेल में खींची गई भगत सिंह की तस्वीर

Shaheed Divas: जीने की इच्छा मुझमें भी है, ये मैं छिपाना नहीं चाहता। मेरे दिल में फांसी से बचने का लालच कभी नहीं आया। मुझे बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है। भगत सिंह ने क्रांतिकारी साथियों के लिए लिखे आखिरी खत की ये पंक्तियां हैं। ये खत भगत सिंह ने 22 मार्च 1931 लिखा था। आपको बता दें, कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को लाहौर की सेंट्रल जेल में 24 मार्च 1931 को फांसी दी जानी थी।

भगत इस फैसले से खुश नहीं थे। उन्होंने 20 मार्च 1931 को पंजाब के गवर्नर को एक खत लिखा कि उनके साथ युद्धबंदी जैसा सलूक किया जाए और फांसी की जगह उन्हें गोली से उड़ा दिया जाए। लेकिन इन तीनों को फांसी तय वक्त से 12 घंटे पहले 23 मार्च 1931 को शाम 7 बजकर 33 मिनट पर दे दी गई थी। इस घटना को आज 92 साल पूरे हो चुके हैं।

लाला की हत्या का बदला लेने के लिए भगत ने खाई थी कसम

30 अक्टूबर 1928 को लाहौर में साइमन कमीशन के विरोध में एक जुलूस निकला, जिस पर पंजाब पुलिस के सुपरिनटैंडैंट जेम्स ए स्कॉट ने लाठीचार्ज करा दिया। इस लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय बुरी तरह घायल हो गए और 18 दिन बाद इलाज के दौरान 17 नवंबर 1928 को उनका निधन हो गया।

Shaheed Divas: भगत, सुखदेव और राजगुरु ने लालाजी की हत्या का बदला लेने की कसम खाई और स्कॉट की हत्या का प्लान बनाया। ठीक एक महीने बाद 17 दिसंबर 1928 को तीनों प्लान के तहत लाहौर के पुलिस हेडक्वार्टर के बाहर पहुंच गए। हालांकि स्कॉट की जगह असिस्टेंट सुपरिनटैंडैंट ऑफ पुलिस जॉन पी सांडर्स बाहर आ गया। भगत और राजगुरु को लगा कि यही स्कॉट है और उन्होंने उसे वहीं ढेर कर दिया।

सांडर्स की हत्या कर लाहौर से बाहक कैसे निकले क्रांतिकारी?

Shaheed Divas: सांडर्स की हत्या के बाद क्रांतिकारी भगत सिंह एक सरकारी अधिकारी की तरह ट्रेन के फर्स्ट क्लास डिब्बे में श्रीमती दुर्गा देवी बोहरा (क्रांतिकारी शहीद भगवतीचरण बोहरा की पत्नी) और उनके 3 साल के बेटे के साथ बैठ गए। वहीं राजगुरु उनके अर्दली बनकर गए। ये लोग ट्रेन से कलकत्ता भाग गए, फिर आजाद ने साधु का भेष बनाया और मथुरा चले गए। भगत को फांसी भले ही लाहौर सेंट्रल जेल में हुई, लेकिन उनकी गिरफ्तारी दिल्ली की सेंट्रल असैंबली में हुई थी।

बहरों को सुनने के लिए जोरदार धमाके की जरूरत होती है

भगत और बटुकेश्वर दत्त 8 अप्रैल 1929 की सुबह 11 बजे असैंबली में पहुंचकर गैलरी में बैठ गए। करीब 12 बजे सदन की खाली जगह पर दो बम धमाके हुए और फिर भगत ने एक के बाद एक कई फायर भी किए। धमाके के वक्त सदन में साइमन कमीशन वाले सर जॉन साइमन, मोतीलाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना, आरएम जयकर और एनसी केलकर भी मौजूद थे।

Shaheed Divas: दिल्ली असैंबली में बम फेंकने के बाद जो पर्चे उछाले गए थे, उन पर लिखा था- ‘बहरों को सुनने के लिए जोरदार धमाके की जरूरत होती है।’ ये पहले से तय था कि भगत और बटुकेश्वर गिरफ्तारी देंगे। 12 जून 1929 को भगत को असैंबली ब्लास्ट के लिए आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई थी।

क्यों भेजा गया था भगत को लाहौर जेल?

जो बंदूक असैंबली में भगत ने सरेंडर की थी, वो वही थी जिससे सांडर्स की भी हत्या की गई थी। इसकी भनक पुलिस को लग चुकी थी। इस केस के लिए भगत को लाहौर की मियांवाली जेल में शिफ्ट किया गया था।

लाहौर जेल पहुंचते ही भगत ने खुद को राजनीतिक बंदियों की तरह मानने का और अखबार-किताबें देने की मांग शुरू कर दी। मांग ठुकरा दिए जाने के बाद 15 जून से 5 अक्टूबर 1929 तक भगत और उनके साथियों ने जेल में 112 दिन लंबी भूख हड़ताल की।

Shaheed Divas: 10 जुलाई को सांडर्स हत्या केस की सुनवाई शुरू हुई और भगत, राजगुरु और सुखदेव समेत 14 लोगों को मुख्य अभियुक्त बनाया गया। 7 अक्टूबर 1929 को इस केस में भगत, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई गई।

सिर्फ दो संदेश.. साम्राज्यवाद मुर्दाबाद और इंकलाब जिंदाबाद!

बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक भगत, सुखदेव और राजगुरु को जल्दी फांसी देने का फैसला सुरक्षा की दृष्टि से लिया गया था। भगत जेल की कोठरी नंबर-14 में बंद थे। फांसी दिए जाने से दो घंटे पहले उनके वकील प्राण नाथ मेहता उनसे मिलने आए। भगत को फांसी का एहसास था, लेकिन उन्होंने मेहता से पूछा, कि आप मेरी किताब ‘रिवॉल्यूशनरी लेनिन’ लाए या नहीं?

Shaheed Divas: जब मेहता ने उन्हें किताब दी तो वो उसे उसी समय पढ़ने लगे। मेहता ने उनसे पूछा, कि क्या आप देश को कोई संदेश देना चाहेंगे? भगत ने किताब से अपना मुंह हटाए बिना कहा- सिर्फ दो संदेश.. साम्राज्यवाद मुर्दाबाद और इंकलाब जिंदाबाद! इसके बाद भगत ने उनसे कहा कि वो नेहरू और सुभाष बोस को मेरा धन्यवाद पहुंचा दें। जिन्होंने मेरे केस में गहरी रुचि ली थी। मेहता जब राजगुरु से मिले तो उन्होंने कहा- हम लोग जल्द मिलेंगे, आप मेरा कैरम बोर्ड ले जाना न भूलें।

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है..

Shaheed Divas: जब तीनों फांसी के तख्ते पर पहुंचे तो जेल ‘सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है.. ‘इंक़लाब जिंदाबाद’ और ‘हिंदुस्तान आजाद हो’ के नारों से गूंजने लगा और अन्य कैदी भी जोर-जोर से नारे लगाने लगे। सुखदेव ने सबसे पहले फांसी पर लटकने की हामी भरी थी। वहां मौजूद डॉक्टरों लेफ्टिनेंट कर्नल जेजे नेल्सन और लेफ्टिनेंट कर्नल एनएस सोधी ने तीनों के मृत होने की पुष्टि की। फांसी देने के लिए मसीह जल्लाद को लाहौर के पास शाहदरा से बुलाया गया था

जेल की दीवार तोड़कर अपमानजनक तरीके से ले जाये गये थे शव

चमन लाल के मुताबिक, जेल के बाहर भीड़ इकठ्ठा हो रही थी। इससे अंग्रेज डर गए और जेल की पिछली दीवार तोड़ी गई। उसी रास्ते से एक ट्रक जेल के अंदर लाया गया और उस पर बहुत अपमानजनक तरीके से उन शवों को एक सामान की तरह डाल दिया गया। अंतिम संस्कार रावी के तट पर किया जाना था, लेकिन रावी में पानी बहुत ही कम था, इसलिए सतलज के किनारे शवों को जलाने का फैसला लिया गया।

Shaheed Divas: लोगों को भनक लग गई और वे वहां भी पहुंच गए। ये देखकर अंग्रेज अधजली लाशें छोड़कर भाग गए। बाद में परिजनों ने उनका अंतिम संस्कार किया। तीनों के सम्मान में तीन मील लंबा शोक जुलूस नीला गुंबद से शुरू हुआ। पुरुषों ने विरोध में अपनी बाहों पर काली पट्टियां बांध रखी थीं और महिलाओं ने काली साड़ियां पहन रखी थीं। इसके 16 साल बाद यानी 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश हुकूमत को हमेशा के लिए भारत छोड़कर जाना पड़ा।

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By Susheel Chaudhary

मेरे शब्द ही मेरा हथियार है, मुझे मेरे वतन से बेहद प्यार है, अपनी ज़िद पर आ जाऊं तो, देश की तरफ बढ़ते नापाक कदम तो क्या, आंधियों का रुख भी मोड़ सकता हूं ।