Supreme Court: मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट में संसोधन करते हुए, उच्च न्यायालय ने महिलाओं के हक में एक बड़ा फैसला लिया है। जिसमें विवाहिता व अविवाहिता महिलाओं को समान अधिकार दिया गया है। एमटीपी एक्ट के संसोधन में विवाहिता महिलाओं की तरह ही अविवाहिता महिलाओं को सुरक्षिक व कानूनी गर्भपात करने की हकदार हैं। न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा, कि एक अविवाहित महिला को अनचाहे गर्भ का शिकार होने देना मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) अधिनियम के उद्देश्य और भावना के विपरीत होगा।
एक अवविवाहित महिला ने दायर की थी याचिका
Supreme Court: एक 25 वर्षीय अविवाहित महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर 24 सप्ताह की गर्भावस्था में गर्भपात कराने की अनुमति देने की मांग की थी। महिला ने पहले दिल्ली हाई कोर्ट से इस संबंध में अनुमति मांगी थी, लेकिन हाई कोर्ट ने सहमति से गर्भधारण करने और MTP एक्ट का हवाला देते हुए याचिका पर विचार करने से इंकार कर दिया था। इसके बाद महिला ने सुप्रीम कोर्ट में आदेश को चुनौती दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट से अविवाहित महिलाओं को लिव-इन रिलेशनशिप से बाहर करना असंवैधानिक है। इस तरह से अविवाहित महिलाओं के बीच भेदभाव नहीं कर सकते। कोर्ट ने साफ कर दिया, कि इस कानून की व्याख्या केवल विवाहित महिलाओं तक सीमित नहीं रह सकती। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, कि अगर बिना मर्जी के कोई विवाहित महिला गर्भवती होती है, तो इसे मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत रेप माना जाना चाहिए और इस लिहाज से उसे गर्भपात कराने का अधिकार होगा।
आपको बता दें, कि 16 जुलाई को दिल्ली हाईकोर्ट ने 23 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग वाली अविवाहित मणिपुरी महिला की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि गर्भ सहमति से धारण किया गया है और यह स्पष्ट रूप से मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स, 2003 के तहत किसी भी खंड में शामिल नहीं है।
Supreme Court: महिला ने अपनी याचिका में कहा कि वह बच्चे को जन्म नहीं दे सकती क्योंकि वह एक अविवाहित महिला है और उसके साथी ने उससे शादी करने से मना कर दिया है। इसमें आगे कहा गया कि अविवाहित तौर पर बच्चे को जन्म देने से उसका बहिष्कार होगा और साथ ही मानसिक पीड़ा भी होगी। दिल्ली हाईकोर्ट के इसी फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनोती दी गयी थी।