BKU: देश के किसानों का सबसे बड़ा संगठन भारतीय किसान यूनियन बीते दिन अचानक से टूट गया और टूटकर बिखर गया। चौंकाने वाली बात यह कि यह उस दिन हुआ जिस दिन भाकियू की स्थापना करने वाले बाबा महेन्द्र सिंह टिकैत की पुण्यतिथि थी। भाकियू एक ऐसा किसानों का संगठन है, जिसने किसानों के हित में कार्य करते हुए सरकारों से अपनी हर माँगों को पूरा कराया है।इतना ही नहीं हाल ही में कृषि कानूनों को लेकर केन्द्र सरकार के खिलाफ सालों तक दिल्ली बॉर्डर पर धरना दिया। इसके बाद इस धरना का असर यह हुआ कि केन्द्र में बैठी मोदी सरकार को तीनों कृषि कानून वापस लेने पड़े और सरकार को किसानों के आगे झुकना पड़ा।
लखनऊ में हुई बैठक के दौरान गठवाला खाप के चौधरी राजेंद्र सिंह मलिक के संरक्षण और राजेश सिंह चौहान के नेतृत्व में भारतीय किसान यूनियन से अलग भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक) के नाम से नया संगठन बनाया गया है। इस तरह किसान आंदोलन का अहम चेहरा रहे राकेश टिकैत और नरेश टिकैत किसान यूनियन में अलग–थलग पड़ गए हैं।
सूबे की सियासत में चर्चायें हैं, कि भाकियू में दो फाड़ होने के पीछे योगी सरकार का हाथ है, क्योंकि भाकियू में दो फाड़ होने की पटकथा तो चुनाव नतीजे आने के 10 मार्च को ही लिखी जा चुकी थी। नया संगठन भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक) बनाने वाले लोग पहले से ही योगी सरकार के संपर्क में थे, सरकार की हर नितियों का समर्थन करने के लिए आगे रहते थे।
गठवाला खाप के चौधरी राजेंद्र सिंह मलिक जिन्हें संगठन का संरक्षक बनाया गया है, वो बीजेपी और योगी सरकार के हर कदम पर साथ खड़े नजर आते हैं तो धर्मेंद्र मलिक योगी सरकार में कृषि समृद्ध आयोग के सदस्य रह चुके हैं। ऐसे में किसान यूनियन से राकेश टिकैत को देर–सवेर ठिकाने लगना तय माना जा रहा था।
टिकैत भाजपा का विरोध कर किसानों के बड़े नेता बनना चाहते थे
राकेश टिकैट बीजेपी को वोट से चुनाव में चोट देने का ऐलान खुलकर कर रहे थे जबकि मोदी सरकार ने कृषि कानूनों को वापस लेने का निर्णय ले चुकी थी। इसके बावजूद राकेश टिकैट ने बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था, राकेश टिकैत को भी यह लगने लगा था कि वो यूपी में योगी सरकार हटाकर और अखिलेश–जयंत की जोड़ी की सरकार बनवाकर वह देश के सबसे बड़े किसान नेता बन जाएंगे।
उत्तर प्रदेश में राकेश टिकैट किसानों को बीजेपी सरकार के खिलाफ खुलेआम वोट करने का अह्वावन करते दिखाई दिए और चुनाव में बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोलना भी उन्हें भारी पड़ गया, ऐसे में यूपी चुनाव के नतीजे आते ही और दोबारा से योगी सरकार बनने के साथ ही लगभग यह तय हो गया था कि अब भारतीय किसान यूनियन और ‘टिकैत बंधुओं‘ पर चोट पड़ना लाजमी है, क्योंकि सीएम योगी आदित्यनाथ के बारे में कहा जाता है कि वो वक्त आने पर अपना सियासी हिसाब जरूर बराबर करते हैं।
भाकियू अराजनैतिक के अध्यक्ष ने क्या बोला?
BKU: नवनियुक्त अध्यक्ष राजेश चौहान ने कहा कि भाकियू(टिकैत) अपने किसानों के मूल मुद्दों से भटक गई और अब राजनीति करने लगी है, राकेश टिकैत और नरेश टिकैत दोनों राजनीति में दिलचस्पी रखते हैं, इसी वजह से किसानों के हितों के लिए भाकियू अराजनैतिक नया संगठन बनाना पड़ा जो राजनितिक दलों से दूर रहकर किसानों के हित में काम करेगा और आगे बोला कि हम बाबा महेन्द्र सिंह टिकैत के दिखाये हुए मार्ग पर चलेंगे।
आपको बता दें कि लखनऊ में नए सगंठन का निर्माण होने की भनक जैसे ही राकेश टिकैत को लगी तो उन्होने तब से ही किसान नेताओं को मनाना शुरु कर दिया था, लेकिन जब ये साफ हो गया कि संगठन में दो फाड़ होना तय है, तो तभी राकेश टिकैत लखनऊ से मुजफ्फरनगर के लिए रवाना हो गये।
भाकियू टिकैत से कौन–कौन किया गया बर्खास्त?
भाकियू छोड़कर लखनऊ में नया संगठन भारतीय किसान यूनियन अराजनैतिक बनाने वाले सात वरिष्ठ नेताओं को भाकियू से बर्खास्त कर दिया गया है। भाकियू के राष्ट्रीय महासचिव युद्धवीर सिंह ने प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए कहा कि संगठन के विरुद्ध गलत नीतियों के कारण राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राजेश सिंह चौहान, राष्ट्रीय महासचिव अनिल तालान, प्रदेश उपाध्यक्ष हरिनाम वर्मा, यूपी/एनसीआर के अध्यक्ष मांगेराम त्यागी, मुरादाबाद मंडल के अध्यक्ष दिगम्बर सिंह, मीडिया प्रभारी धर्मेन्द्र मलिक, प्रदेश उपाध्यक्ष राजबीर सिंह (गाजियाबाद) को संगठन के विरुद्ध भ्रामक प्रचार करने और गलत नीतियों में सम्मिलित पाएं जाने पर तत्काल प्रभाव से भारतीय किसान यूनियन संगठन से बर्खास्त किया जाता है। बर्खास्त किए गए सभी नेता लखनऊ में गन्ना संस्थान के प्रेक्षागृह में आयोजित भारतीय किसान यूनियन अराजनैतिक के गठन की घोषणा में शामिल रहे हैं।
35 साल में 6 बार टूटा भाकियू
1 मार्च 1987, यह वह तारीख है जब भाकियू का गठन बाबा महेंद्र सिंह टिकैत ने किया था। उद्देश्य था किसानों के हक की लड़ाई लड़ना। बीते 35 साल में भाकियू और इसके नेताओं का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर तक जरूर पहुंचा, लेकिन संगठन में लगातार बिखराव होता रहा। यह बिखराव भी एक-दो बार नहीं पूरे 6 बार हुआ..
- 1996 में मतभेद होने के बाद नोएडा के ऋषिपाल अंबावत भाकियू (टिकैत) से अलग हो गए। अब वह भाकियू (अंबावत) के खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।
- 2008 में इलाहाबाद में हुए भाकियू के चिंतन शिविर में तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष भानुप्रताप सिंह को गंभीर आरोप लगाते हुए संगठन से बाहर कर दिया गया। इसके बाद भानुप्रताप सिंह ने नया संगठन बना लिया, जो भाकियू (भानु गुट) के नाम से जाना जाता है।
- गुरनाम सिंह चढूनी भाकियू (टिकैत) के हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष थे। 2012-13 में हरियाणा में गन्ना आंदोलन के दौरान वह टिकैत से अलग हो गए। फिर अपनी अलग भाकियू (चढूनी) गठित कर ली।
- 29 नवंबर, 2017 को मास्टर श्यौराज सिंह भाकियू टिकैत से अलग हो गए। उन्होंने भाकियू लोकशक्ति नाम से अपना नया संगठन बना लिया। इस संगठन के वह खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।
- चौधरी हरपाल सिंह बिलारी भाकियू असली नाम से संगठन चलाते हैं। इससे पहले ये भी भाकियू टिकैत का हिस्सा थे।
- 15 मई, 2022 को लखनऊ में राजेश चौहान, राजेश मलिक, अनिल तालान, मांगेराम त्यागी, धर्मेंद्र मलिक जैसे प्रमुख नेताओं ने भाकियू (टिकैत) से अलग होकर दूसरी भाकियू अराजनैतिक बना ली है।