Hijab: मामला एक बार फिर तूल पकड़ रहा है। जो कि कर्नाटक के एक कॉलेज से शुरू हुआ हिजाब मामला पूरे देश में चर्चा का विषय बना रहा और एक राजनैतिक मुद्दा बना उसके बाद कर्नाटक कोर्ट ने हिजाब पर रोक लगाते हुए कॉलेज में ड्रेस कोड लागू किया।
आपको बता दें कि कर्नाटक के उप्पिनंगडी गवर्नमेंट प्री–यूनिवर्सिटी कॉलेज में हिजाब पहनकर कॉलेज पहुँची 6 छात्राओं को गुरुवार को निलंबित कर दिया गया। कई बार प्रिंसिपल के चेताए जाने के बावजूद ये छात्राएँ कॉलेज में हिजाब पहनकर पहुँची थीं। इसलिए कॉलेज के प्रिसिंपल ने स्टाफ की मीटिंग के बाद इन छात्राओं को बर्खास्त करने का फैसला लिया। कॉलेज प्रशासन के मुताबिक, इन छात्राओं को 1 हफ्ते के लिए इसलिए निलंबित किया गया, क्योंकि उन्हें आशंका थी कि इससे अन्य छात्राओं को भी विरोध के लिए उकसाया जा सकता है।
आगे ये भी बतातें कि हिजाब पर रोक के बावजूद कर्नाटक के दूसरे कॉलेज में गुरुवार को भी 16 छात्राएँ हिजाब पहनकर पहुँची थीं। हम्पनाकट्टे के पास मंगलुरु यूनिवर्सिटी के कॉलेज में हिजाब पहनकर पहुँची इन छात्राओं ने क्लास करने की अनुमति माँगी थी। कॉलेज की प्रिंसिपल ने उन छात्राओं को कक्षाओं में जाने से मना कर दिया और उन्हें वापस भेज दिया। छात्राओं ने जिला आयुक्त के कार्यालय जाकर इसकी शिकायत की थी कि उन्हें हिजाब पहनकर कक्षाओं में नहीं बैठने दिया जा रहा है। इसके बाद डीसी ने उन्हें कॉलेज की रूलबुक, सरकार और कोर्ट के आदेशों का पालन करने के लिए कहा था।
शैक्षिणक संस्थानों में हिजाब पर क्यों लगी थी रोक
आपको याद होगा कि पीयू कॉलेज का यह मामला सबसे पहले 2 जनवरी 2022 को सामने आया था, जब 6 मुस्लिम छात्राएँ क्लासरूम के भीतर हिजाब पहनने पर अड़ गई थीं। कॉलेज के प्रिंसिपल रूद्र गौड़ा ने कहा था कि छात्राएँ कॉलेज परिसर में हिजाब पहन सकती हैं, लेकिन क्लासरूम में इसकी इजाजत नहीं है। प्रिंसिपल के मुताबिक, कक्षा में एकरूपता बनाए रखने के लिए ऐसा किया गया है। इसके बाद कर्नाटक सरकार ने भी इस संबंध में 5 फरवरी को आदेश दिए थे।
Hijab: सरकार के आदेश में छात्र–छात्राओं को ड्रेस कोड का पालन करने की बात कही गई थी। इसके बाद हिजाब विवाद मामले पर 15 मार्च को कर्नाटक हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए उन तमाम याचिकाओं को खारिज कर दिया था, जो शैक्षिणक संस्थानों में हिजाब पहनने की माँग को लेकर दायर की गई थीं। कोर्ट ने अपना फैसला लेते हुए कहा था कि हिजाब इस्लाम में कोई अनिवार्य चीज नहीं है। इसलिए सरकार के 5 फरवरी वाले आदेश को अमान्य करने का कोई मामला नहीं बनता है।