Jitendra Tyagi: डासना मंदिर के महंत नरसिंहानंद के बाद जितेंद्र त्यागी ने भी सार्वजनिक जीवन से लिया संन्यास, अब नहीं होगी ‘धर्म संसद’

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Jitendra Tyagi: गाजियाबाद के डासना मंदिर के महंत और जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद गिरी महाराज के सार्वजनिक जीवन के संन्यास के बाद अब शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष जितेंद्र त्यागी उर्फ वसीम रिजवी ने सार्वजनिक जीवन से सन्यास लेने का ऐलान कर दिया। उन्होंने साथ ही ये भी कहा कि आज से और अब से वो सार्वजनिक जीवन से संन्यास ले रहै और अब कभी भी ‘धर्म संसद’ का आयोजन नहीं करेंगे।

Jitendra Tyagi: सूत्रो की माने तो जितेंद्र त्यागी उर्फ वसीम रिजवी जब जेल से रिहा हुए उसके बाद उन्होंने हरिद्वार के शांभवी धाम काली सेना प्रमुख दिनेशानंद भारती के सानिंध्य मे रहकर भगवान शंकर का अभिषेक किया था। तभी जितेंद्र त्यागी ने सार्वजनिक जीवन से सन्यास की इच्छा जतायी थी।

जितेंद्र त्यागी संन्यास मामले के संदर्भ में अखाड़ी परिषद के प्रमुख श्रीमंत रविंद्र पुरी ने बताया कि उन्होंने हिंदू धर्म कुछ समय पहले अपना लिया है और अब अगर वो सार्वजनिक जीवन से सन्यास लेना चाहते है तो ऐसा करने में कोई समस्या भी नहीं है।

गौरतलब है कि जितेन्द्र त्यागी, हरिद्वार में हुई ‘धर्म संसद’ के दौरान दिए गए भड़काऊ भाषण की वजह से 4 महीने से हरिद्वार जेल में बंद थे। गत गुरूवार 19 मई को उनकी जेल से रिहाई हुई थी।

आप को बता दें कि  गाजियाबाद के डासनी देवी मंदिर के महंत और जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद गिरी महाराज ने जितेंद्र नारायण त्यागी उर्फ वसीम रिजवी की रिहाई के दौरान, यह कहते हुए सबको चौका दिया कि वह तत्काल प्रभाव से सार्वजनिक जीवन से संन्यास ले रहे है। बाकि का शेष जीवन, सनातन धर्म और गीता के प्रचार-प्रसार में लगाएंगे। उन्होंने इस्लामी जिहाद के खिलाफ अपनी लड़ाई को यही  विराम लगाते हुए कहा कि वो आज से और अभी से ‘धर्म संसद’ के आयोजन से खुद को अलग कर रहे है। 

उन्होंने आगे कहा, “मैं हिन्दू समाज से कहना चाहता हूँ कि मैंने अपना जीवन जितना भी था उसे इस्लाम के जिहाद से लड़ने में लगाया। लेकिन अब बचा हुआ जीवन मैं माँ और महादेव के यज्ञ के साथ योगेश्वर की गीता के प्रचार-प्रसार में लगाना चाहता हूँ। मैं अब तक अपने से हुई गलतियों के लिए माफी माँगता हूँ। आज के बाद मैं सार्वजानिक जीवन में नहीं हूँ। मेरे जीवन में अब नया अध्याय केवल एक धार्मिक व्यक्ति के तौर पर शुरू होता है।

 

मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो, यति नरसिंहानंद का यह फैसला उन्होंने अचानक नहीं लिया बहुत सोच समझ कर लिया है। उन्होंने कहा कि  हिन्दू समाज ने  इस्लामी जिहाद के खिलाफ साथ नहीं दिया। नरसिंहानंद ने कहा की जब हिंदू समाज की उनको इस लड़ाई में जरूरत थी तब हिंदू समाज ने उनके और धर्म संसद में शामिल रहे उनके साथियों का साथ नहीं दिया इस से वह काफी दुखी है। 

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By Atul Sharma

बेबाक लिखती है मेरी कलम, देशद्रोहियों की लेती है अच्छे से खबर, मेरी कलम ही मेरी पहचान है।