Maharashtra: बाला साहेब ठाकरे हमेशा अक्रामक मोड़ पर रहते थे। उन्होंने बोला था, कि जब तक मैं हूँ मैं ही शिवसेना को संभालूंगा। आज बाला साहेब की जगह उद्धव ठाकरे शिवसेना को संभाल रहे हैं। बाला साहेब कभी सरकार में नहीं रहे, लेकिन उद्धव 2019 से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हैं। एक शांत स्वभाव वाले उद्धव पर घर से सरकार चलाने के आरोप लगते रहे। विपक्षी दल बीजेपी गठबंधन टूटने के बाद से ही लगातार उन्हें बाला साहेब के जमाने की शिवसेना की याद दिलाती रही और उन पर बाला साहेब के हिंदुत्व के एजेंडे से समझौता करने के आरोप लगाती रही। जबकि ये एक बड़ा सच है कि बाला साहेब का विवादों से नाता रहा है। विवादों की वजह से ही बाला साहेब पर 6 साल तक वोट न डालने का प्रतिबंध तक लगा था।
कैसी थी बाला साहेब की शिवसेना?
बाला साहेब का कहना था, कि देश के आगे कुछ भी स्वीकार नहीं। अपनी इसी विचारधारा पर चलते हुए बाला साहेब ने वो तमाम काम भी कर दिए, जिन्हें विवादित माना गया। 1966 में शिवसेना का गठन किया। राजनीति में उतर आए लेकिन कभी चुनाव नहीं लड़ा। न कभी सरकार में कोई पद लिया। मगर, महाराष्ट्र और खासकर मुंबई को अपनी उंगलियों से चलाते रहे। 2012 में अपने निधन तक बाल ठाकरे शिवसेना के सर्वेसर्वा रहे।
बाला साहेब कहते थे कि उन्हें सहिष्णु हिंदू नहीं चाहिए, क्योंकि सहिष्णुता महंगी पड़ी है। वो मिलिटेंट हिंदू की बात करते थे। वो बांग्लादेशी मुसलमानों को बॉर्डर तक छोड़कर आने की बात करते थे। वो कहते थे कि जैसे हिंदुओं को पाकिस्तान, बांग्लादेश या अरब मुल्कों में हक नहीं मिलता वैसे ही भारत में भी मुसलमानों को हक नहीं मिलना चाहिए।
“हिजड़े झुकते हैं सोनिया के सामने”
(Eunuchs now down to Sonia)
This is what Balasaheb Thackeray thought about the Congress & Sonia Gandhi!#ShivSenaBetraysBalasaheb #shivsenacheatsbalasaheb #ShivSenaCheatsMaharashtra pic.twitter.com/Xnu3cPJBbW
— Know The Nation (@knowthenation) November 11, 2019
कैसी है उद्धव ठाकरे की शिवसेना?
ठाकरे परिवार से पहली बार किसी ने सीएम की कुर्सी संभाली। ऐसा कम ही देखा गया है जब उद्धव ठाकरे के भाषण विवाद का हिस्सा बने हों। बाहरी बनाम लोकल का जो मुद्दा बाला साहेब के दौर में हमेशा सुलगता रहा, उसकी गूंज भी उद्धव राज में न के बराबर ही सुनाई दी।
मो. पैगंबर पर टिप्पणी विवाद में जब बीजेपी नेता घिरे तो शिवसेना ने इस मुद्दे पर भी पर बीजेपी की आलोचना की। हालांकि, बीजेपी राज में मुसलमानों से जुड़े बड़े मुद्दों पर शिवसेना ने भले ही कोई क्लियर स्टैंड न लिया हो। लेकिन मुस्लिम समुदाय से जुड़े मसलों पर उसका रुख कड़ा भी नजर नहीं आया है।
शिवसेना कैसे बदली?
अब बाला साहेब नहीं हैं और पार्टी विवादों से भी दूर है। उद्धव को पूरे देश के सामने ये कहना पड़ा कि अगर किसी शिवसैनिक को लगता है, कि मैं सक्षम नहीं हूँ तो वो आए और मेरा इस्तीफा खुद राज्यपाल को सौंप आए। यहाँ तक कि उद्धव ने शिवसेना प्रमुख का पद छोड़ने तक का ऑफर दे दिया। वही, शिवसेना जिसे लेकर बाला साहेब कहते थे कि जब तक मैं हूँ, पार्टी में मैं ही रहूंगा।
Maharashtra: पार्टी में बहुत कुछ बदल तो गया है, लेकिन वक्त के साथ ये बदलाव सकारात्मक है या नकारात्मक, इस पर विचार-विमर्श किया जा सकता है।