Mathura: जन्माष्टमी पर बांके बिहारी मंदिर में अव्यवस्था के लिए जिम्मेदार कौन… प्रशासन या मंदिर प्रबंधन?

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Mathura: हिन्दू धर्म में हर त्यौहार को बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है, कल भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव बड़े धूम-धाम से मनाया गया। घरों और मंदिरों में पूरा दिन हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की इसकी गूंज सुनाई दी।

जन्माष्टमी पर मंदिरो और देवस्थानों पर भी खूब रौनक देखने को मिलती है, बहुत दूर दूर से श्रद्धालु उनके दर्शन करने पहुंचते हैं, भगवान के दर्शन की अधीरता इस कदर थी कि लोग सुबह से ही सैकड़ों की संख्या में लाइन में लग गए थे।

ताकि सुबह 7 बजे मंदिर खुलने पर सबसे पहले प्रभु के दर्शन करने का सौभाग्य उन्हें ही मिल जाये, लेकिन इन सब क बीच जब मंदिरो की अव्यवस्था पर बात की जाए तो उनकी हालत बहुत ख़राब होती है।

जहां लगता है की भगवान की कृपा पाने आई हजारों की भीड़ को भगवान भरोसे ही छोड़ दिया गया है। देश में आए दिन मंदिरों में छोटे बड़े हादसे होते रहते हैं और इन सबसे सबक लेने की जरूरत है।

Mathura: देश के कई प्रसिद्ध मंदिरों में इस कदर अव्यवस्था और अफरातफरी का माहौल होता है कि कई बार लोगो को हादसे का शिकार होना पड़ता है, आस्था का सैलाब जहां भी जुटता है वहां हादसों की आशंका भी गहरा जाती है।

परेशानी की बात ये है कि इतने हादसों के बावजूद हम इन मंदिरों में सुरक्षा और भीड़ को मैनेज करने के ऐसे इंतजाम करने में कामयाब नहीं हो पाए हैं जो लोगों की जान जाने से बचा पाए।

Mathura: कल जन्माष्टमी का त्यौहार मनाया गया, और कान्हा का जन्मोत्सव के लिए भारत के मंदिरों में से एक बांके बिहारी मंदिर वृंदावन बहुत प्रसिद्ध है । इस मंदिर में केवल साल में एक बार कृष्ण जन्माष्टमी के दिन ही मंगला आरती होती है।

इसके बाद ही भक्तों के लिए मंदिर के कपाट खोले जाते हैं। कृष्ण जन्माष्टमी के चलते मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है, लेकिन देर रात दर्शन के लिए उमड़ी भीड़ के बीच एक बड़ा हादसा हो गया। ठाकुर बांके बिहारी मंदिर में वर्ष में एक बार होने वाली मंगला आरती के समय भीड़ के बीच भगदड़ मच गई।

Mathura: मंदिर में भगदड़ मचने से दो की मौत की खबर है और कई लोग घायल बताए जा रहे हैं। लेकिन ये कोई पहली बार नहीं ही की देश में हर साल विभिन्न त्योहारों के दौरान देश के अलग-अलग हिस्सों में सैंकड़ों लोग अपनी जानें गंवाते हैं….

ऐसे में बड़ा सवाल उठता है मंदिरो में की गयी व्यवस्थाओ पर, क्या मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा की व्यवस्था नहीं करनी चाहिए, सरकारें हर साल होने वाले इन हादसों को लेकर इस कदर बेफिक्र रहती हैं कि लगता है उन्हें जनता की जरूरत सिर्फ चुनाव के वक्त वोट पाने के लिए ही होते है। उसके बाद जनता की चिंता वह क्यों करें, भगवान के भक्त हैं तो भगवान ही जानें, उनसे क्या लेनादेना!

कई बार छोटे से संकरे रास्तों के बीच धक्का-मुक्की करते हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ में जब लोगो की दम घुटने से मोत हो जाती है लेकिन प्रशासन और सरकार कोई भी इन घटनाओ से सबक क्यों नहीं लेता ?

मंदिर में इतने हज़ारो लोग आते है की रास्ते तक छोटे पढ़ जाते हैं, दरअसल, ऐसे हादसों के बुनियादी कारण भीड़ प्रबधंन का ना होना होता है, जिसपर आजतक कोई ठोस नीति नहीं बन पाई।

अगर ये नीति बनी होती और उसे सही तरीके से संचालित किया गया होता तो शायद वर्ष के पहले दिन ऐसी दर्दनाक घटना से हमें सामना नहीं करना पड़ता।

Mathura: भगवान ने लगाई अर्जी, सुनेगा कौन? यहां मंदिर के सामने ही बदइंतजामी और गंदगी का ढेर और भक्तों को इन अव्यवस्थाओं से होने वाली परेशानियों को देखकर लगता है कि भगवान ही गुहार लगा रहे हैं कि कम से कम उनके घर के आंगन को तो स्वच्छ रखो…

जिस तरह के हालत बांके बिहारी में देखे गए वो डराने वाले थे, हज़ारो की संख्या में लोग बस जैसे एक के ऊपर एक गिर रहे हों, अगर आप अपने परिवार के साथ वह जाते है तो आप भी घुटन और भगदड़ का सामना कर सकते हैं, भीड़ ऐसी की सांस लेना दूभर हो जाता है, आसपास कौन है किसी को पता नहीं चलता।

कई बार लोग अपने साथ अगर बच्चो को ले जाते है तो ये उनकी सबसे बड़ी गलती होती है, कई बार देखा गया है ऐसी भीड़ के बीच होते बच्चे    माँ-बाप से बिछड़ जाते है।

Mathura: एक ऐसा ही वाक्य श्रद्धालु ने सुनाया तो उसने कहा की घोर अव्यवस्था है भयंकर भीड़ थी, और उन्होंने किसी बड़े हादसे की आशंका भी जताई, उन्होंने कहा की वो दूसरी बार मथुरा गए थे।

सुबह कृष्ण जन्मस्थान के दर्शन करने के बाद सीधे द्वारकाधीश मंदिर के दर्शनों के लिये चले गए लेकिन मंदिर बंद था क्योंकि मंदिर 11 बजे तक ही खुलता है लोगों ने बताया कि अब मंदिर शाम 5 बजे खुलेगा ।

इसके बाद वो बाँके बिहारी मंदिर के लिए रवाना हो गए । बाँके बिहारी मंदिर की भी यही स्थिति थी वो भी सुबह 11 बजे के करीब बंद हो जाता है फिर शाम 5 बजे के करीब खुलता है।

मतलब आपको यहां अगर दर्शन करने है तो आपको मंदिर खुलने का इंतज़ार करना होगा , क्यूंकि यंहा 24 घंटे मंदिर खुले रहने की व्यवस्था ही नहीं है, जिसकी वजह से लोगो की भीड़ एक बार में ही जमा हो जाती हैं।

ऐसे में बड़े ही नहीं लोग अपने साथ छोटे-छोटे बच्चो को भी लेकर जाते हैं जरा सोचिये इस हालत में बच्चे खो जाए या उस भगदड़ का शिकार हो जाये तो उस माँ और बाप पर क्या गुजरेगी?

Mathura: मंदिर में दाखिल होने के बाद आपको वंहा कुछ लोग वीआईपी दर्शन करवाने की बात भी कहते दिखाई देंगे, अब ऐसे में आपको कुछ पैसे देकर वीआईपी दर्शन करने दिया जाता है।

मंदिर में VIP दर्शनों के लिए रेट लगे हए हैं जैसे छप्पन भोग दर्शन 5000 रुपए, श्रृंगार दर्शन 10 हजार रुप, 25 हजार तक दर्शन का रेट लगा होता है, ऐसा देखा कई बार गुस्सा भी आता है की आखिर कैसे इन पुजारियों ने मंदिर को व्यवसाय का अड्डा बना दिया है ।

मंदिर में पहुंचेड श्रद्धालु ने बताया की ये लोग शायद जानबूझकर मंदिर बंद रखते हैं और शाम को ही खोलते हैं ताकी भारी भीड़ हो जाए तो ही लोग VIP दर्शन के लिए पैसे देंगे ।

इसके बाद उन्होंने बरसाना का जिक्र किया जंहा राधा रानी के मंदिर में तो और भी बुरा हाल देखा । प्रसाद लेने के लिए जूतम-पैजार के साथ लट्टमलट्ठ हुए जा रहे थे लोग ।

जिनको ईश्वर ने अच्छी लंबाई दी है अच्छी कद काठी दी है वो भी असहाय नजर आ रहे थे । बरसाना के बाद जब नंद गाँव गए तो हमारा मन प्रसन्न हो उठा क्योंकि नंद मंदिर के पुजारी जी अत्यंत तेजवान थे उन्होंने पूरी भीड़ को व्यवस्थित किया ।

अपने काशी-विश्‍वनाथ कॉरिडोर देखा ही होगा, इस कॉरिडोर का लोकार्पण पीएम मोदी ने किया था इसकी हम बात इसलिए कर रहे है क्यूंकि वंहा की जो व्यवस्था लोगो को दी जा रही है वो बाकि सभी जगह से बेहतर और सुविधाजनक है, जहां पहले संकरी गालियां हुआ करती थी अब वंहा प्रवेश के लिए 4 विशालकाय द्वार बनाए गए हैं।

सुरक्षा के लिए हाईटेक कंट्रोल रूम बनाया गया है। पूरे धाम क्षेत्र में CCTV कैमरे लगाए गए हैं। धाम में आपातकालीन चिकित्सा सुविधा से लेकर एंबुलेंस तक की व्यवस्था भी की गई है, ताकि अगर ऐसी कोई भी घटना हो तो लोगो को तुरंत संभाला जा सके, तो फिर ऐसी सुविधा मथुरा या वृन्दावन में क्यों नहीं है ?

जहां वैष्णो देवी में मंदिर 24 घंटे खुले मिलते है जिससे सभी को दर्शन करने का मौका मिलता है वैसा मथुरा और वृन्दावन धाम में क्यों नहीं है ? क्यों वह मंदिर खुलने का समय ऐसा रखा जाता है की लोगो की भारी भीड़ जमा हो जाए।

लेकिन सवाल तो यह है कि इंसानों की दुनिया में भगवान के रहने की जगह को बेहतर कौन बनाएगा? जहां भगवान की ही अर्जी सुनने वाला कोई नहीं है, वहां भक्तों के बारे में कौन सोचेगा? प्रशासन को आवाम की सुरक्षा करना पहली जिम्मेदारी होनी चाहिए, उसे हलके में नहीं लेना चाहिए…

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By Atul Sharma

बेबाक लिखती है मेरी कलम, देशद्रोहियों की लेती है अच्छे से खबर, मेरी कलम ही मेरी पहचान है।