Atal Bihari Death Anniversary: बात साल 15 अगस्त 2018 की है जब पूरा देश स्वतंत्रता दिवस का जश्न मना रहा था। तो वहीं भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अपनी जिंदगी की जंग दिल्ली के एम्स में लड़ रहे थे।15 अगस्त मना तो सही लेकिन अटल जी के अस्वस्थ की खबर से जश्न थोड़ा फीका रहा। 15 अगस्त की शाम आजादी के जश्न का उत्साह कम हुआ और 16 अगस्त की सुबह सूर्य की किरणें एक नई ऊर्जा के साथ उदयमान ही हुई थी कि अटल बिहारी की मौत की खबर ने पूरे देश को शोक में डुबो दिया। वाजपेयी केवल अपनी पार्टी के ही नहीं बल्कि विपक्ष के भी चहेते नेता थे। उनकी विशालता का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं, कि पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उनके ओज को देखकर एक बार संसद में कह दिया था कि यह नौजवान एक दिन देश का प्रधानमंत्री बनेगा।
कहां से शुरू हुआ अटल का राजनीतिक जीवन?
अटल बिहारी वाजपेयी 1951 में भारतीय जनसंघ से जुड़ गए। वह पार्टी के संस्थापक और अध्यक्ष श्यामा प्रसाद मुखर्जी के राजनीतिक सचिव थे। 1953 में मुखर्जी की मौत के बाद वो पूरी तरह से पार्टी के सदस्य बन गए। भारतीय जनसंघ में वाजपेयी के बढ़ते दबदबे को देखते हुए, 1955 के उपचुनाव में उन्हें लखनऊ लोकसभा सीट के लिए पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर उतारा गया, जो पंडित जवाहरलाल नेहरू की बहन विजया लक्ष्मी पंडित के इस्तीफे के बाद खाली हो गई थी। हालांकि उस चुनाव में वाजपेयी हार गए थे। उन्होंने तीसरा स्थान हासिल किया था। वाजपेयी के उस चुनावी अभियान को उनके प्रभावशाली व्याख्यात्मक कौशल के लिए याद किया जाता है।
इसके दो साल बाद 1957 के लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी ने तीन जगहों से चुनाव लड़ा, जिसमें उन्हें बलरामपुर से जीत मिली, जबकि लखनऊ संसदीय क्षेत्र से वो दूसरे नंबर पर और मथुरा में उनकी जमानत जब्त हो गई।जब राजा महेन्द्र प्रताप सिंह ने मथुरा लोकसभा सीट से जीत हासिल की थी। पंडित नेहरू की कांग्रेस के खिलाफ एक छोटी पार्टी से आने के बावजूद वाजपेयी ने पहली बार एक सांसद के रूप में असाधारण प्रदर्शन किया था।
अटल जी ने पूरी दुनिया को बताई थी हिंदी की ताकत
Atal Bihari Death Anniversary: कविताओं और किताबों के शौकीन अटल बिहारी वाजपेयी ने 1977 की जनता सरकार में जब वह विदेश मंत्री थे, तो उन्होंने पूरी दुनिया को भारत की सादगी, सच्चाई, धर्मनिरपेक्षता और यहां के लोकतंत्र से अवगत कराया। यूएन में पहली बार किसी नेता ने हिंदी में भाषण दिया और इसका असर ऐसा कि सभी प्रतिनिधियों ने वाजपेयी के लिए खड़े होकर तालियां बजाई थी। अटल बिहारी वाजपेयी ने यूएन में हिंदी भाषा में अपने भाषण को देने का विचार इसलिए रखा था कि उन्हें अंतरराष्ट्रीय पटल पर हिंदी को उभारना था. जबकि अटल धारा प्रवाह, अंग्रेजी बोलते थे।1977 में संयुक्त राष्ट्र संघ के मंच पर हिंदी की गूंज पूरी दुनिया ने सुनी थी।