मेरी यात्रा: दिल्ली से करीब 670 किमी दूर पहाड़ों के बीच स्थित उदयपुर अपने आप में वीरों के शौर्य और पराक्रम की गाथा समेटे हुए है। वैसे तो राजस्थान वीरों के इतिहास की किताब है, लेकिन उस किताब के अहम पन्ने से रूबरू होने के लिए हम देर रात दिल्ली से सफर कर उन्हीं पहाड़ियों के बीच में पहुंच गये, जिसके बीच उदयपुर बसा हुआ है। देर रात पहुंचने के कारण एक आलीशान प्रतिष्ठान में ठहरना हुआ, जो कि बहुमंजिला था, उसकी चोटी पर बने स्विमिंग पूल का आनंद लेने जैसे ही हम लिफ्ट से ऊपर पहुंचे तो प्रतिष्ठान की ऊंचाई ज्यादा होने के कारण शहर का दृश्य कुछ इस तरह दिखाई दे रहा था, मानो पहाड़ उदयपुर को अपने आंचल में छुपाये हुए हों, ताकि कोई गलत निगाह न डाल सके।

सिटी पैलेस में सिमटा है उदयपुर का इतिहास
उदयपुर स्थित सिटी पैलेस हम पहुंचे तो लगा मानो उदयपुर का पूरा इतिहास इसी में सिमट गया हो। इस पैलेस में प्रवेश फीस 260 व 280 क्रमश: रखी गई है। ये 4 मंजिला पैलेस के जैसे ही ऊपरी मंजिल पर जाते हैं, तो ठीक पीछे पिछोला झील दिखाई और दिखता है उदयपुर पैलेस।

पैलेस में मंजिलों में अपनी अलग-अलग खासियत हैं, पहली मंजिल में उदयपुर का पूरा इतिहास अंकित है। उसी में लगे एक बड़े फ्रेम में उदयपुर के तब से लेकर अब तक के सभी राजाओं के बारे में जानकारी दी गई है। ये पूरा पैलेस यानी महल दो भागों में विभाजित है, मर्दाना व जनाना महल। मर्दाना महल का एक बड़ा हिस्सा उस समय प्रयोग में लाए गये शस्त्रों में घिरा हुआ या कहें तो समर्पित है। जनाना भाग में सुसज्जा पर ज्यादा ध्यान दिया गया है, दीवारों पर पत्थरों से की गई कलाकारी देखने योग्य है।
पहुंच गये हल्दीघाटी
उदयपुर से 30 किलोमीटर दूर हल्दीघाटी के लिए हम कार से निकल गये। हल्दीघाटी का नाम आते ही रगों में सिहरन दौड़ गई। जैसे ही हम हल्दीघाटी के दर्रे पर पहुंचे और उस बलिदान की मिट्टी से तिलक किया तो उस शौर्यता का इतिहास साकार हो उठा।

हल्दीघाटी दर्रे से लौटते समय कुछ दूरी पर स्थित उस गुफा को भी देखा, जिसमें महाराणा प्रताप अपने साथियों के साथ युद्ध की गुप्त मंत्रणा करते थे। आज भी वह गुफा ज्यों-की-त्यों बनी हुई है।
मर गये-मिट गये हार न मानी
महाराणा प्रताप बेहद साहसी व सूरवीर थे। अकबर ने पूरे हिंदुस्तान को हत्याने की मुहिम छेड़ी, अकबर का संदेशा महाराणा प्रताप को भी आया लेकिन प्रताप ने हार मानने से साफ इंकार कर दिया। अकबर ने मेवाड़ पर विशाल सेना से हमला बोल दिया, हालांकि खुद नहीं आया। राणा की सेना पर अकबर की सेना भारी पड़ रही थी। महाराणा प्रताप के पास अदम्य साहस और राजा पुंजा का साथ था, जिनकी सेना गौरिल्ला युद्ध में पारंगत थी। महाराणा प्रताप ने जीवन के अंत तक अकबर के आगे घुटने नहीं टेके, हार नहीं मानी।

मेरी यात्रा: राणा के महल से लेकर हल्दीघाटी तक आत्मसात कर हम उदयपुर से जयपुर होते हुए दिल्ली आ गये। सफर तो हुआ खत्म, लेकिन हुआ यादों में हमेशा बस जाने के लिए।