Up: दिल्ली से यूपी का कानपुर करीब 500 किलोमीटर दूर स्थित है। कानपुर यूपी का बहुचर्चित शहर है। कानपुर में लोगों को बोलने के साथ ही रहने का अलग ही अंदाज है। कानपुर राजनिती का गढ़ माना जाता है, लेकिन आज हम राजनीति की बात नहीं करेंगे। बात करेंगे वहां के खाने के चर्चित प्रतिष्ठानों की।
बदनाम कुल्फी सिर्फ कानपुर में ही बदनाम नहीं है, पूरे यूपी के साथ दिल्ली तक के लोग भी कुल्फी के दीवाने हैं। इतना ही नहीं जब लोगों की जुबां पर कुल्फी का नाम आता है, तो कानपुर की “बदनाम कुल्फी” को याद कर मुँह में पानी आना लाजमी है।
कैसे हुई कानपुर की कुल्फी बदनाम?
कानपुर में कुल्फी के बदनाम होने के पीछे भी एक कहानी है, जो हम आपको बताएंगे। दरअसल इस कुल्फी की दुकान की स्थापना राम अवतार पांडे ने की थी। इस नाम के पीछे की वजह यह है, कि जब बदनाम कुल्फी की शुरुआत हुई थी तब फुटपाथ पर लगाकर यह कुल्फी बेची जाती थी।
Up: फुटपाथ पर बिकने के बावजूद इसकी बिक्री बहुत ज्यादा थी। इस वजह से इसका नाम बदनाम हो गया और कानपुर वासियों पर बदनाम कुल्फी का स्वाद सर चढ़कर बोलने लगा। जबकि बदनाम कुल्फी की टैग लाइन ‘चखते ही जुबां और जेब की गर्मी गायब’ है। और ये भी है “मेहमान को चखाना नहीं, टिक जायेगा।”
ऐसे तैयार होती है कुल्फी
इस कुल्फी को तैयार करने के लिए सबसे पहले दूध की रबड़ी बनाई जाती है। उस रबड़ी में काजू, बादाम, पिस्ता डाला जाता है। उसके बाद इसको स्टील के एक वेसल में डाला जाता है। उसके बाद उसके चारों तरफ बर्फ की सिल्ली लगाई जाती है और उसे कई घंटे उसी में घुमाया जाता है, जब यह रबड़ी जम जाती है तब वह कुल्फी के रूप में परोसी जाती है।
ठग्गू के लड्डू वालों की ही कुल्फी बदनाम है
बदनाम कुल्फी की शुरुआत फुटपाथ से हुई थी। बड़े चौराहे पर फुटपाथ पर सबसे पहले यह कुल्फी बेची जाती थी, लेकिन जैसे-जैसे इसकी बिक्री बढ़ती गई, वैसे-वैसे इसके शहर भर में आउटलेट खुलते गए। आज बदनाम कुल्फी के शहर में कुल 6 आउटलेट्स हैं, जो कि “ठग्गू के लड्डू” के नाम से जाने जाते हैं। वहीं, कुल्फी के दाम की बात की जाए तो यह ₹60 की 100 ग्राम कुल्फी से लेकर ₹600 किलो तक बिकती है।