India: ओडिशा के बालासोर में शुक्रवार रात एक भीषण हादसा हो गया। तीन ट्रेनों के बीच हुई टक्कर में अब तक 280 लोगों की मौत हो चुकी है और 1000 से अधिक लोग घायल हो चुके है। घटना की चपेट में सिर्फ कोरोमंडल एक्सप्रेस आई थी। मालगाड़ी पटरी से नहीं उतरी। जबकि मालगाड़ी तो कोयला ले जा रही थी। इसलिए सबसे ज्यादा नुकसान कोरोमंडल एक्सप्रेस को हुआ। कोरोमंडल की पटरी से उतरी बोगियां नीचे लाइन पर आ गई थी और यशवंतपुर एक्सप्रेस की पिछली दोनो बोगियों से टकरा गई थी। जो नीचे की लाइन से 126 किमी/घंटे की रफ्तार से पार कर रही थी।
रेलवे बोर्ड की सदस्य ऑपरेशन एंड बिजनेस डेवलपमेंट जया वर्मा सिन्हा ने बताया कि रेलवे ने हादसे के बाद सबसे पहले राहत और बचाव का काम किया है और फिर उसके बाद मरम्मत का कार्य किया जा रहा है। जया ने बताया कि बहानागा स्टेशन पर चार रेलवे लाइन है जिनमे से दो मुख्य लाइन है और दो लूप लाइन है। लूप लाइन पर एक मालगाड़ी थी। स्टेशन पर ड्राइवर को ग्रीन सिगनल मिला था। दोनो गाडियां अपनी पूरी गति में चल रही थी।
रेलवे बोर्ड की तरफ से कहा गया है कि तीन नहीं, बल्कि केवल कोरोमंडल एक्सप्रेस ट्रेन ही हादसे का शिकार हुई। वह पहले जिस गाड़ी से टकराई उसमे लोहा लदा हुआ था। इस वजह से मालगाड़ी अपनी पटरियों से नहीं हिली। लेकिन दूसरी तरफ कोरोमंडल के डिब्बे दूसरी पटरियों पर जा गिरे। जो यशवंतपुर ट्रेन के पिछले दो डिब्बों से टकरा कर गिर गए।
रेल कवच एक ऑटोमैटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम है। इसे ‘ट्रेन कोलिजन अवॉइडेंस सिस्टम’ यानी TCAS कहते हैं। यह भारत में 2012 में बनकर तैयार हुआ था। इंजन और पटरियों में लगे इस डिवाइस की मदद से ट्रेन की ओवर स्पीडिंग को कंट्रोल किया जाता है। इस तकनीक में किसी खतरे का अंदेशा होने पर ट्रेन में अपने आप ब्रेक लग जाता है। तकनीक का मकसद ये है कि ट्रेनों की स्पीड चाहे कितनी भी हो, लेकिन कवच के चलते ट्रेनें टकराएंगी नहीं।
ट्रेनों के पटरी से उतरने के कई कारण होते हैं। अक्सर टूटी हुई पटरी और स्वीच में गड़बड़ी के कारण ट्रेन पटरी से उतर जाती है। ये खामियां खराब रखरखाव, मौसम की मार या अन्य दूसरे कारणों से परिणामस्वरूप देखने को मिलते हैं।
कई रिपोर्ट्स में यह बात सामने आ चुकी है कि भारतीय रेल की पटरियों की हालत बहुत अच्छी नहीं है। ऐसे में हाई स्पीड ट्रेन के पहियों और ट्रैक के बुनियादी ढांचे पर अधिक दबाव पड़ने से, ट्रेन के डिरेल होने का खतरा बढ़ जाता है।
कई बार ट्रेन के डिरेल होने में मानवीय त्रुटियों का भी योगदान होता है। ट्रेन ऑपरेटरों, सिग्नल अनुरक्षकों, या रखरखाव कर्मियों द्वारा की गई गलतियों के कारण भी ट्रेन पटरी से उतर सकती है। इसमें गलत स्विचिंग, सुरक्षा प्रोटोकॉल का ठीक से पालन न करना या पटरियों और उपकरणों के निरीक्षण व रखरखाव में लापरवाही शामिल हैं।
कवच को लेकर दावा किया जाता है कि वह ट्रेन हादसों को रोकने में कारगर है। कवच को लेकर रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव ने पहले कहा था कि हम अपना एक सिस्टम कवच बना रहे हैं। कवच यूरोप के सिस्टम से भी ज़्यादा बेहतर है। हमने एक टेस्ट भी किया है। इस टेस्ट में एक ट्रेन में मैं भी सवार था। एक ही ट्रैक पर दो तरफ़ से हाई स्पीड में ट्रेनें आ रही थीं। ठीक 400 मीटर की दूरी पर कवच सिस्टम ट्रेनों को ख़ुद से रोक देता है। मैं इंजीनियर था तो मैंने इन ट्रेनों में बैठने का रिस्क ख़ुद लिया और इसका परीक्षण किया। मैं बहुत आत्मविश्वास से भरा था।
लेकिन अब कवच सिस्टम को ले कर बहुत सवाल खड़े हो रहे है कि कवच सिस्टम ओडिसा के रेल हादसे को क्यों नहीं रोक पाया। रेलवे प्रवक्ता अभिताभ शर्मा ने कहा है कि कवच सिस्टम रूट के आधार पर होता है। दिल्ली-हावड़ा और दिल्ली बॉम्बे रूट पर ही फिलहाल कवच सिस्टम को लगाया जा रहा है और प्रक्रिया में है। जिस रूट पर हादसा हुआ, वहां कवच सिस्टम शुरू नहीं हुआ था।
Written By: Swati Singh
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