World Saree Day: विश्व साड़ी दिवस के अवसर पर जहां एक तरफ भारतीय साड़ी में नारी ने विश्वभर में धूम मचा रखी है। इसी बीच कृष्ण की नगरी वृंदावन से आई सूती साड़ी में पूजा-पाठ करती विदेशी महिलाओं की तस्वीरों ने सोशल मीडिया पर एक नई बहस को जन्म दे दिया है। कोई इन तस्वीरों की तारीफ कर रहा है तो कोई सवाल पूछ रहा है कि आखिर कृष्ण की नगरी में ऐसा क्या है जो विदेशी यहां आते ही भारतीय संस्कृति को अपना लेते हैं।
जहां एक तरफ भारतीय साड़ी में नारी भारतीय सभ्यता का परिचय दे रही हैं तो वहीं एक तबका ऐसा भी है जो पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित होकर भारतीय परिधान से दूर जा रहा है। ऐसे में भारतीय होने के नाते साड़ी पर बात करना आज विश्व साड़ी दिवस के अवसर पर बेहद जरूरी हो जाता है। वह साड़ी जिसे पहनी महिला में भारतीय संस्कृति झलकती हो, वह साड़ी जो भारतीय सभ्यता का परिचय देती हो, वह साड़ी जिसे पहनी महिला के प्रति हर किसी का सम्मान हिलोरे लेकर उबाल मारता हो।
World Saree Day: साड़ी का शोर तब और ज्यादा सुनाई देता है जब आप भारत के गांव में प्रवेश करें या फिर कृष्ण की नगरी मथुरा, वृंदावन जैसे धार्मिक नगरी में घूम रहे हों। आप देखेंगे कि विदेशों से घूमने आये लोग यहां आकर अपनी वेशभूषा को बदल लेते हैं। पुरूष कुर्ता-धोती में दिखाई देते हैं तो विदेशी महिलाएं सूती साड़ी के साथ माथे पर तिलक, चंदन और हाथों में माला जपती हुई नजर आती हैं। इतना ही नहीं उनके मुंह से एक ही धुन सुनाई पड़ती है हरे राम, हरे कृष्ण, हरे राम-हरे कृष्ण।
इस बात में कोई दो राय नहीं कि वास्तम में असली भारत आज भी गांव में बसता है। भारत क्या है, कैसा है। उसकी संस्कृति, सभ्यता और परंपरा क्या है ये सब देखना है तो भारत के किसी गांव में जाइए और देखिए, लेकिन दुख तब होता है कि जब युवा पीढ़ी पश्चिमी सभ्यता की चकाचौंध में अपनी संस्कृति को दरकिनार कर देती है और आजादी के नाम पर फूहड़ता परोसने से भी परहेज नहीं करती।
World Saree Day: यहां तक कि दिल्ली सहित मेट्रो सिटी में पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित युवा पीढ़ी परिजनों की आंखों में धूल झोंककर खुलेआम नशा करने को ही जीवन का असली आनंद मान लेते हैं। दुख होता है जब दिल्ली एनसीआर की बड़ी आलीशान इमारतों के बीच कहीं चौराहों पर खड़े होकर शॉर्ट कपड़े पहने युवक, युवतियां शराब के प्याले और सिगरेट के धुएं का छल्ला बनाकर भारतीय संस्कृति और सभ्यता की धज्जियां उड़ाते हुए नजर आते हैं।
एक दौर वो था जब भारतीय महिलाएं 16 श्रृंगार कर साड़ी पहनकर निकलने से पहले शीशे के सामने खड़े होकर अपनी धुरी पर घूमकर साड़ी के पल्लू को संभालती थीं, जो अपने संस्कारी होने का भलीभांति परिचय देती थीं, लेकिन आज के इस दौर में साड़ी पहनने का मतलब कुछ लोग अल्प शिक्षित समझने लगते हैं। शॉर्ट पहनावे को प्रदर्शित करना ही शायद अब शिक्षा की परिभाषा समझने लगे हैं।
आपको बता दें, कि हर तरह के कपड़ों का फैशन आता है और चला जाता है, लेकिन भारत में एक साड़ी ही ऐसा सदाबहार परिधान है, जो कि आदिकाल से पहना जा रहा है और शायद आगे भी पहना जायेगा, भले ही इसे पहनने में महिलाओं के एक वर्ग को शर्म आती हो, लेकिन पश्चिमी देश इसे अब अपनाने लगे हैं।
ये बात अलग है कि जो वर्ग साड़ी पहनने से परहेज करता है वह अपनी शादी भी वही साड़ी पहनकर करता है। यहां तक कि फैशन के दौर में करवाचौथ, तीज-त्यौहार, होला-दीवाली और शुभ मौके पर वहीं महिलाएं साड़ी के बिना फीकी कहें या फिर कहें कि अधूरी-अधूरी सी नजर आती हैं।
एक समय वो भी था, कि जब दो पक्की सहेलियों की पहचान तब होती थी कि जब एक सहेली की शादी में दूसरी सहेली साड़ी पहनाने में मदद करती थी, लेकिन अब युवापन में साड़ी पहनने और उसे खरीदने का शौक कम होता दिखाई देता है।
World Saree Day: आप ये जान लें, कि जिसकी संस्कृति और सभ्यता छूट गई उसका अस्तित्व चला गया और जिसका अस्तित्व चला गया उसका सबकुछ चला गया। इसीलिए विचार करें और सोचें कि हम किस दिशा में जा रहा हैं और अपनी भविष्य की पीढ़ी को क्या दे रहे हैं। बहरहाल, खबर इंडिया की तरफ से भारतीय संस्कृति से प्रभावित महिलाओं को विश्व साड़ी दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
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