Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार में कोलेजियम व्यवस्था को लेकर लंबे समय से तकरार चल रही थी लेकिन अब ये लड़ाई केंद्र सरकार और सु्प्रीम कोर्ट में नाक की लड़ाई बन गई। लग ये रहा है कि न्यायपालिका और विधायिका में से कोई भी झुकने के लिए तैयार नहीं है। उसका जीता जागता उदाहरण खुद सु्प्रीम कोर्ट की टिप्पणी है जिसमें कहा गया कि जजों की नियुक्ति का कॉलेजियम सिस्टम देश का कानून है। इसके खिलाफ टिप्पणी ठीक नहीं है।
शीर्ष अदालत ने ये भी कहा कि उसके द्वारा घोषित कोई भी कानून सभी के लिए बाध्यकारी है और कॉलेजियम प्रणाली का पालन किया जाना चाहिए। आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट अदालतों में जजों की नियुक्ति के लिए कोलेजियम द्वारा भेजे गए नामों को मंजूरी देने में केंद्र की ओर से की जा रही देरी से संबंधित एक मामले की सुनवाई कर रही थी।
Supreme Court: जस्टिस एस के कौल की अध्यक्षता वाली पीठ जिसमें जस्टिस ए एस ओका और विक्रम नाथ भी शामिल हैं। उन्होंने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से कहा (जो कि सरकार के परोक्षकार भी है) कि जब तक कोलेजियम व्यवस्था लागू है और उसे कोर्ट ने सही ठहराया है, उसे लागू करना होगा।
पीठासीन जजों की बैंच ने ये भी कहा कि “आप दूसरा कानून लाना चाहते हैं लाएं किसी ने आपको दूसरा कानून लाने से नहीं रोका है। कोर्ट ने कहा कि अगर समाज का एक वर्ग ये तय करने लगेगा कि किस कानून का पालन करना है और किसका नहीं करना तो ब्रेकडाउन हो जाएगा।
इतना ही नहीं कोर्ट ने सरकार में पदासीन लोगों द्वारा कोलेजियम व्यवस्था के बारे में की गई टिप्पणियों पर भी एतराज जताया। एक दिन पहले ही उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राज्यसभा में एनजेएसी को कोर्ट की ओर के खारिज किए जाने पर सवाल खड़ा किया था।
Supreme Court: गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीशों की नियुक्ति की कोलेजियम की सिफारिशों को लंबे समय तक दबाए रखने के रवैये पर कड़ा एतराज जताया। पीठ ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि कोलेजियम व्यवस्था कानून है और इसका पालन होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट द्वारा घोषित प्रत्येक कानून सभी हितधारकों पर बाध्यकारी है।
सरकार की पैरोकारी कर रहे अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी से कोर्ट ने कहा जब तक कोलेजियम व्यवस्था लागू है और उसे कोर्ट ने सही ठहराया है, तो उसे लागू करना होगा। आप दूसरा कानून लाना चाहते हैं लाएं किसी ने आपको दूसरा कानून लाने से नहीं रोका है।
कोर्ट ने कहा कि अगर समाज का एक वर्ग ये तय करने लगेगा कि किस कानून का पालन करना है और किसका नहीं करना तो ब्रेकडाउन हो जाएगा। इतना ही नहीं कोर्ट ने सरकार के पदासीन लोगों द्वारा कोलेजियम व्यवस्था के बारे में की गई टिप्पणियों पर भी एतराज जताया।
गुरुवार को कोर्ट ने संवैधानिक व्यवस्था का हवाला देते हुए कहा कि संवैधानिक योजना में अदालत ही कानून की अंतिम व्याख्या करती है और उसको ही कानून की अंतिम व्याख्या करने का अधिकार भी है।
गुरुवार को न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामले में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने नियुक्ति संबंधी प्रक्रिया मैमोरेंडम आफ प्रोसीजर (एमओपी) और कोलेजियम की लंबित सिफारिशों के बारे में सुप्रीम कोर्ट में स्थिति रिपोर्ट पेश की।
स्थिति रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार ने कोलेजियम द्वारा नियुक्ति की सिफारिश के साथ भेजे गए 19 नामों को हाल ही में कोलेजियम को वापस भेज दिया है। इनमें से कुछ सिफारिशें ऐसी भी हैं जिन्हें कोलेजियम दोहरा चुका है।
Supreme Court: गौरतलब है कि वकील प्रशांत भूषण जो कि एक याचिकाकर्ता संगठन की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए थे। उन्होंन कहा कि कुछ सिफारिशें तो 2016 की हैं। जो कि अभी तक निलंबित पड़ी हुई है और जिन्हें अभी तक केंद्र सरकार ने मंजूर नहीं दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार द्वारा कोलेजियम द्वारा नियुक्ति की सिफारिश को नहीं मानने और अभी तक दबाए रखने पर कड़ा ऐतराज जताते हुए कहा कि “इस तरह की देरी के कारण ही ऐसी याचिकाएं दाखिल होती हैं और मांग की जाती है। इस स्थिति से बचा जा सकता था। सिफारिश के दो साल बाद नाम वापस भेजे गए।
Supreme Court: कोर्ट ने ये भी कहा कि कोलेजिमय द्वारा दोहराई गई सिफारिशों को वापस भेजना पूर्व निर्देशों का उल्लंघन है। ये एक तरह से न खत्म होने वाली लड़ाई है। इस पिंग पांग बैटल को कैसे खत्म किया जाए। ये हम आप से जानना चाहते है।
पीठ ने सरकार से यह भी कहा कि आपको ध्यान में रख कर फैसला करना चाहिए कि कोलेजियम द्वारा भेजी गई सिफारिशों में वरिष्ठताक्रम का भी ध्यान रखना आपकी जिम्मदारी है और आप को समझना होगा कि लंबे समय तक सिफारिश दबाए रहने से वरिष्ठता क्रम डिस्टर्ब होता है।
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