RSS: 4 फरवरी 1948 को गृह मंत्रालय से नोटिस जारी हुआ और संघ पर प्रतिबंध लगा गया। नोटिस में लिखा था, कि RSS के सदस्यों ने खतरनाक काम किए हैं। देश के कुछ हिस्सों में आगजनी, डकैती, हत्या और अवैध हथियारों के लेन-देन में शामिल रहे हैं। संघ प्रेरित हिंसा ने कई लोगों की जान ली है। राष्ट्रपिता बापू महात्मा गांधी इसके ताजा शिकार बने हैं। उन दिनों देश के गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल थे। हालांकि, 16 महीने बाद 11 जुलाई 1949 को कुछ शर्तों के साथ संघ पर प्रतिबंध हटा दिया गया।
30 जनवरी, 1948 की शाम थी, दिल्ली के बिड़ला भवन में महात्मा गांधी प्रार्थना स्थल की ओर बढ़ रहे थे। उसी वक्त नाथूराम गोडसे भीड़ से निकला। उसने दोनों हाथ जोड़ रखे थे और हाथों के बीच में रिवॉल्वर छिपा रखी थी। कुछ ही सेकेंड में नाथूराम ने रिवॉल्वर तानी और एक के बाद एक तीन गोलियां गांधीजी पर चला दीं। गांधीजी के मुंह से ‘हे राम…’ निकला और वे जमीन पर गिर पड़े। गोडसे को मौके पर ही गिरफ्तार कर लिया गया।
RSS: वहीं उसके दो साथी नारायण आप्टे और विष्णु करकरे दिल्ली छोड़कर भाग गए। नाथूराम को संघ का सदस्य माना जाता था, इसलिए तत्कालीन केंद्र सरकार ने संघ को गांधी की हत्या के लिए जिम्मेदार मानते हुए उस पर बैन लगा दिया। गोडसे को RSS का सदस्य माना जाता था, इसलिए तत्कालीन केंद्र सरकार ने संघ को गांधी की हत्या के लिए जिम्मेदार मानते हुए उस पर बैन लगा दिया।
आरएसएस के लोग इस बैन को हटवाने के लिए लगातार प्रयास करते रहे। सितंबर, 1948 में तत्कालीन सरसंघचालक गोलवलकर ने गृह मंत्री सरदार पटेल को पत्र लिखकर संघ से बैन हटाने की मांग की। इसके जवाब में पटेल ने पत्र में लिखा- ‘हिंदू समाज को संगठित करना और मदद करना एक बात है, लेकिन उनके दुखों का निर्दोष और असहाय लोगों से बदला लेना दूसरी बात है। संघ के सदस्यों के भाषणों में सांप्रदायिक जहर होता है। हिंदुओं को इकट्ठा करने के लिए जहर फैलाना जरूरी नहीं है। इस जहर की वजह से देश ने राष्ट्रपिता बापू को खो दिया।
RSS: 6 महीने में जेल से रिहा होने के बाद गोलवलकर ने पंडित नेहरू और सरदार पटेल को पत्र लिखकर आरएसएस से प्रतिबंध हटाने के लिए कहा। इसके जवाब में सरकार ने कहा कि उनके पास आरएसएस के गांधी हत्या में शामिल होने के सबूत हैं। इसके बाद गोलवलकर ने सरकार को चुनौती दी कि उन सबूतों को सार्वजनिक करे और संघ पर मुकदमा चलाए।
हालांकि, सरकार ने कोई सबूत जारी नहीं किए। इसके बाद गोलवलकर ने बंद पड़ी शाखाओं को फिर से चालू करने का आदेश दिया। नतीजतन, सरकार ने उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया। 9 दिसंबर 1948 को RSS ने सत्याग्रह शुरू किया। उनकी मांग थी- आरोप साबित करो, बैन हटाओ और गुरुजी यानी गोलवलकर को रिहा करो। एक महीने के अंदर RSS के 80 हजार से ज्यादा सदस्य गिरफ्तार हो गए।
संघ पर प्रतिबंध लगने के एक साल पूरा होने के बाद भी सरकार के पास संघ के खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं थे। सरकार धीरे-धीरे बैकफुट पर जा रही थी। आखिरकार, 11 जुलाई 1949 को सरकार ने RSS से बैन हटाने का फैसला लिया। 1949 में बैन हटाते समय जारी किए गए सरकारी नोटिस के मुताबिक, सरकार ने संघ से बैन तो हटाया, लेकिन कई शर्तें भी लगाईं।
RSS: संघ ने सरकार से वादा किया कि वो संविधान और तिरंगे के लिए वफादार रहेगा। संगठन में हिंसक लोगों के लिए कोई जगह नहीं होगी। संघ अपना संविधान बनाएगा जिसके तहत संगठन में लोकतांत्रिक ढंग से चुनाव होंगे। साथ ही संघ एक सांस्कृतिक संगठन के तौर पर काम करेगा और राजनीति में कदम नहीं रखेगा।
धीरेंद्र कुमार झा की किताब ‘Gandhi’s Assassin’ के मुताबिक, नाथूराम ने 8 नवंबर 1948 को कोर्ट में प्रमाण पत्र देकर कहा, कि गांधी हत्या के वक्त वो संघ का सदस्य नहीं था। गोडसे ने आगे कहा, कि मैंने कई सालों तक आरएसएस में काम किया। बाद में मुझे लगा कि हिंदुओं के अधिकारों की रक्षा के लिए राजनीति में हिस्सा लेना जरूरी है। इसलिए मैंने संघ छोड़कर हिंदू महासभा की सदस्यता ले ली थी।
इन सवालों को सबसे ज्यादा उछाल नाथूराम गोडसे के भाई गोपाल गोडसे के एक इंटरव्यू ने दिया। गोपाल गोडसे को महात्मा गांधी की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा हुई थी। उसने 1994 में फ्रंटलाइन पत्रिका को इंटरव्यू दिया था। इसमें गोपाल ने बताया, नाथूराम ने कोर्ट में संघ छोड़ने की बात इसलिए कही क्योंकि गांधी हत्या के बाद संघ और गोलवलकर भारी मुसीबत में फंस गए थे।
RSS: असल में नाथूराम ने कभी संघ नहीं छोड़ा था। वह संघ में बौद्धिक कार्यवाह बन गया था। हम सभी भाई- नाथूराम, दत्तात्रेय, मैं और गोविंद संघ के साथ जुड़े हुए थे। आप कह सकते हैं कि हम घर से ज्यादा, संघ में पल कर बड़े हुए थे। यह हमारे लिए एक परिवार की तरह था। गोपाल ने आगे कहा कि RSS ने गांधी की हत्या करने का आदेश नहीं दिया था, लेकिन संघ उन्हें अपना मानने से इंकार नहीं कर सकता। हिंदू महासभा ने हमेशा उन्हें अपना माना।
नवंबर 1993 में लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था, कि गोडसे RSS का कट्टर आलोचक था और संघ का गोडसे से कोई लेना-देना नहीं है। नाथूराम के भाई आडवाणी के इसी बयान से भड़क गए थे। उन्होंने इसे कायरता बताया था।
महात्मा गांधी की हत्या के अपराध में अदालत ने नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी की सजा सुनाई थी। पांच लोगों विष्णु करकरे, मदनलाल पाहवा, शंकर किस्तैया, गोपाल गोडसे और दत्तारिह परचुरे को उम्रकैद की सजा मिली थी। बाद में हाईकोर्ट ने किस्तैया और परचुरे को बरी कर दिया था।
RSS: 15 नवंबर 1949 के दिन नाथूराम और आप्टे को फांसी दी गई थी। गांधी पर किताब लिख चुके लेखक धीरेंद्र कुमार झा कारवां के एक आर्टिकल में बताते हैं कि फांसी से पहले नाथूराम ने एक प्रार्थना पढ़ी..
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोऽहम्
महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे
पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते
RSS: ये आरएसएस की आधिकारिक प्रार्थना है। 1939 में लिखी गई इस प्रार्थना को संघ की शाखाओं में पढ़ा जाता है। सवाल उठते हैं, कि अगर नाथूराम संघ को छोड़ चुका था तो उसने जीवन के अंतिम क्षणों में संघ की प्रार्थना का पाठ क्यों किया।
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