Indore Ankita nagar : घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के बावजूद भी अपने दिन रात की कड़ी मेहनत से अंकिता बनी जज इंदौर के मूसाखेड़ी रोड पर अंकिता के माता पिता लक्ष्मी और अशोक नागर सब्जी का ठेला लगाते हैं। आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण अंकिता के माता पिता लंबे अर्से से सब्जी के ठेला लगाते हैं और दोनो कड़ी मेहनत कर घर का खर्चा चलाते हैं
Indore Ankita nagar :सोचने वाली बात यह है कि एक मिडिल क्लास की लड़की सिर्फ और सिर्फ अपनी कड़ी मेहनत और संघर्ष से अपने सपने को साकार करती है और अंकिता संघर्ष कर रहे छात्रों के लिए मिसाल है मार्ग दर्शक हैं कि किस तरह सारी समस्यायों का सामने करते हुए अपनी मंजिल को हासिल कर दिखाया
अंकिता अपने माता-पिता के साथ कभी-कभी सब्जी के ठेले पर दिखाई देती थी जो कि सब्जी बेचकर अपने माता पिता का सहयोग करती थी।
एमपी में सिविल जज वर्ग-2 के परिणाम आते ही अंकिता की पहचान बदल गई है। वह एससी कोटे से पांचवीं रैंक हासिल कर सिविल जज बन गई है। सिविल जज में चयन होने के बाद भी अंकिता (Ankita Civil judge) यहां सब्जी बेच रही थी लेकिन उसके चेहरे पर गजब की चमक थी। मां-पिता का सीना भी बेटी की सफलता से चौड़ा हो गया है। इस सफलता के बाद सब्जी के ठेले से लेकर घर तक बधाई देने वाले और अंकिता व उसके परिवार वालों से मिलने वाले लोगों का जमावड़ा लगा हुआ है।
हालांकि इस सफलता के पीछे की कहानी बेहद कठिन है। दरअसल इस सफलता को हासिल करने के लिए अंकिता ने कई परेशानियां झेली हैं, लेकिन अब सफल अंकिता संघर्ष कर रहे छात्रों के लिए मिसाल बन गई हैं। अंकिता के माता-पिता सब्जी बेचकर ही अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं। अंकिता दो बहन और एक भाई हैं, जिनमें से अंकिता सबसे छोटी हैं बड़े भाई और बहन की शादी हो गई है।
अंकिता अभी तक अपनी पढ़ाई में लगी हुए थी सब्जी बेचकर जो पैसा आता था उसी से घर के खर्चे से लेकर अंकिता की पढ़ाई तक का खर्चा चलता था। सिविल जज बनी अंकिता ने बताया कि एक समय में हमारे पास फॉर्म भरने के लिए 800 रुपये नहीं थे। मेरे पास उस दिन 500 रुपये थे। मां दिन भर ठेले पर सब्जी बेचकर 300 रुपये जुटाई इसके बाद फॉर्म भरा। सिविल जज बनी अंकिता का परिवार इंदौर के छोटे से घर में अपना गुजारा करता है।
पिता प्रतिदिन सब्जी के ठेला लगाते हैं और मां घर के काम के साथ-साथ पति के साथ उनकी मदद भी करती थी। पिता के हाथ में काम बंटाने के लिए अंकिता भी सब्जी के ठेले पर पहुंच जाती थी। वह खुद सब्जी तौलकर ग्राहकों को देती थी, इससे मां-पिता को मदद मिल जाती थी। रिजल्ट आने के बाद उसने मां को ठेले पर ही जाकर बताई थी कि मैं जज बन गई हूं।
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