Veer Savarkar Jayanti: आज वीर सावरकर की 139 वीं जयंती है। सावरकर को भारत का एक वर्ग ब्रिटिश सरकार की लिखी एक चिट्ठी का हवाला देकर उन्हें डरपोक और रणछोड़ की संज्ञा देता है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी व भाजपा या फिर आरएसएस सावरकर को क्रांतिकारी, राष्ट्रभक्त और वीर सपूत की संज्ञा देते हैं। आज वीर सावरकर की जयंती पर प्रधानमंत्री ने श्रधांजलि देते हुए ट्वीट कर कहा कि माँ भारती के कर्मठ सपूत वीर सावरकर को उनकी जयंती पर आदरपूर्ण श्रद्धांजलि।
साथ ही प्रधानमंत्री ने सावरकर से जुड़े चित्रों को मिलाकर तैयार की गई एक तस्वीर (फोटो मोंटाज) भी साझा की। इसमें एक वॉइसओवर भी शामिल किया गया है, जिसमें मोदी और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सावरकर की खूबियों और योगदान के बारे में बता रहे हैं। मुंबई स्थित सावरकर दर्शन प्रतिष्ठान में वर्षों पहले दिया गया पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी का विख्यात भाषण, जो कि देश के हर युवा के मुँह पर है आज सावरकर की जयंती पर सोशल मीड़िया पर शेयर किया जा रहा है।
Veer Savarkar Jayanti: अटल जी ने सावरकर के मायने बताते हुए बोला था कि सावरकर माने तेज, सावरकर माने त्याग, सावरकर माने तप, सावरकर माने तत्व, सावरकर माने तर्क, सावरकर माने तारुण्य, सावरकर माने तीर, सावरकर माने तलवार, सावरकार माने तिलमिलाहट.. सागरा प्राण तड़मड़ला, तड़मड़ाती हुई आत्मा, सावरकर माने तितीक्षा, सावरकर माने तीखापन, सावरकर माने तिखट। कैसा बहुरंगी व्यक्तित्व! कविता और क्रांति! कविता और भ्रांति तो साथ-साथ चल सकती है, लेकिन कविता और क्रांति का साथ चलना बहुत मुश्किल है।
आगे बोलते हुए कहा कि सावरकर जी एक व्यक्ति नहीं हैं, एक विचार हैं। एक चिंगारी नहीं हैं, एक अंगार हैं। सीमित नहीं हैं, एक विस्तार हैं। मन, वचन और कर्म में जैसा तादात्म्य जैसी एकरूपता सावरकर जी ने अपने जीवन में प्रकट की, वो अनूठी है, अलौकिक है। उनका व्यक्तित्व, उनका कृतित्व, उनका वक्तृत्व और उनका कवित्व सावरकर जी के जीवन को ऐसा आयाम प्रदान करते हैं कि विश्व के इतिहास में हमेशा याद किए जाएंगे।
आपको बता दें कि वीर दामोदर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 में महाराष्ट्र में हुआ था। सावरकर महान क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी, समाजसुधारक, इतिहासकार, राष्ट्रवादी नेता तथा विचारक थे। उन्हें वीर सावरकर के नाम से सम्बोधित किया जाता है। हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीतिक विचारधारा को विकसित करने का बहुत बड़ा श्रेय सावरकर को जाता है। वे एक वकील, राजनीतिज्ञ, कवि, लेखक और नाटककार भी थे। सितम्बर 1965 से उन्हें तेज बुखार ने आ घेरा, जिसके बाद इनका स्वास्थ्य गिरने लगा। 1 फ़रवरी 1966 को उन्होंने मृत्युपर्यन्त उपवास करने का निर्णय लिया। उनकी मृत्यु 26 फरवरी 1966 को मुम्बई में भारतीय समयानुसार सुबह 10 बजे पार्थिव शरीर छोड़कर परमधाम को सिधार गये।
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