Same-Sex Marriage: समलैंगिक विवाह से जुड़ी याचिकाओं पर संविधान पीठ करेगी 18 अप्रैल को सुनवाई

Supreme Court

Same-Sex Marriage:  सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक पीठ समलैंगिक विवाह से जुड़ी याचिकाओं पर 18 अप्रैल को सुनवाई करेगी। आपको बता दें कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से जुड़ी याचिकाओं को संविधान पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया।

Same-Sex Marriage: इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह के मामले में केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि प्यार, अभिव्यक्ति और पसंद की स्वतंत्रता का अधिकार पहले से ही बरकरार है और कोई भी उस अधिकार में हस्तक्षेप नहीं कर रहा है, लेकिन इसका मतलब शादी के अधिकार को प्रदान करना नहीं है।

Same-Sex Marriage: एसजी मेहता ने आगे कहा कि जिस क्षण समलैंगिक विवाह को मान्यता दी जाएगी, गोद लेने पर सवाल उठेगा और इसलिए संसद को बच्चे के मनोविज्ञान के मुद्दे को देखना होगा। उसे जांचना होगा कि क्या इसे इस तरह से उठाया जा सकता है। मामले में  सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समलैंगिक जोड़े के गोद लिए हुए बच्चे का समलैंगिक होना जरूरी नहीं है।

बता दें कि रविवार (12 मार्च) को  सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के अनुरोध से संबंधित याचिकाओं का यह कहते हुए विरोध किया था कि इससे व्यक्तिगत कानूनों और स्वीकार्य सामाजिक मूल्यों में संतुलन प्रभावित होगा।

गौरतलब है  कि भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाहों को मान्यता देने का विरोध किया था। जिस पर रविवार को सुप्रीम कोर्ट में एक फाइलिंग में कहा, अदालत से एलजीबीटी जोड़ों द्वारा दायर मौजूदा कानूनी ढांचे के लिए चुनौतियों को खारिज करने का आग्रह किया था। लेकिन, कोर्ट ने आज सोमवार (13 मार्च) को संवैधिानिक पीठ के पांच जजो की समिति गठित कर दी जो समलैंगिक विवाह की वैधानिकता पर विचार करेगी।

Same-Sex Marriage: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह का विरोध करते हुए रविवार (12 मार्च) को एफिडेविट में कहा था कि “विवाह, कानून की एक संस्था के रूप में, विभिन्न विधायी अधिनियमों के तहत कई वैधानिक परिणाम हैं। इसलिए, ऐसे मानवीय संबंधों की किसी भी औपचारिक मान्यता को दो वयस्कों के बीच केवल गोपनीयता का मुद्दा नहीं माना जा सकता है।

हलफनामे में आगे कहा गया कि भारतीय लोकाचार के आधार पर ऐसी सामाजिक नैतिकता और सार्वजनिक स्वीकृति का न्याय करना और उसे लागू करना विधायिका का काम है। भारतीय संवैधानिक कानून न्यायशास्त्र में किसी भी आधार के बिना पश्चिमी निर्णयों को इस संदर्भ में आयात नहीं किया जा सकता है।

बता दें कि कोर्ट ने छह जनवरी को समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने के मुद्दे पर देश भर के विभिन्न हाई कोर्ट के समक्ष लंबित सभी याचिकाओं को एक साथ जोड़ते हुए उन्हें अपने पास स्थानांतरित कर लिया था।

ये भी पढ़ें…

Karnataka: अजान की आवाज से होता है सिरदर्द, अल्लाह बहरा है, जो लाउडस्पीकर पर चिल्लाना पड़ता है- ईश्वरप्पा
Parliament Session Adjourned: राहुल गांधी का लंदन में देश का अपमान करने पर संसद में बवाल, दोनों सदन कल तक के लिए स्थगित

 

By Atul Sharma

बेबाक लिखती है मेरी कलम, देशद्रोहियों की लेती है अच्छे से खबर, मेरी कलम ही मेरी पहचान है।