Ganesh chaturthi: लालबाग के राजा क्यों कहे जाते हैं बप्पा, जाने क्या है इसकी कहानी पढ़िए पूरी रिपोर्ट

Ganesh chaturthi: ‘लालबाग चा राजा’ यह सुन आपको ऐसा लग रहा होगा कि हम किसी राजा के बारे में आपको बता रहे हैं। लेकिन जिसे इस नाम का ज्ञात होगा वह तुरंत समझ जाता है कि, ये कौन हैं? तो यह और कोई नहीं हमारे चहेते गणेश जी है। जिन्हें लालबाग चा राजा कहा जाता है। दरअसल लालबागचा राजा को देश का सबसे प्रसिद्ध पंडाल माना जाता है। जहां लोग देश से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी इसे देखने आते हैं। यहां की ऐसी मान्यता है कि,जो गणेश मूर्ति यहां स्थापित होती है उन्हें मन्नतों का गणेश भी कहा जाता है। इसकी वजह से भी लोग दूर दूर से घंटों कतारों में लग कर बप्पा के दर्शन करने आते है।

Ganesh chaturthi: इस सार्वजनिक गणेश उत्सव मंडल की स्थापना वर्ष 1934 में चिंचपोकली के कोलियों के द्वारा किया गया था। ऐसा माना जाता है कि पूर्व पार्षद श्री कुंवरजी जेठाभाई शाह, डॉ वी.बी कोरगाओकर और स्थानीय निवासियों के लगातार प्रयास और समर्पण के बाद मलिक ने मालक रजबअली तय्यबअली ने बाजार के निर्माण के लिए एक भूखंड देने का फैसला किया।

Ganesh chaturthi: मंडल का गठन उस युग में हुआ जब स्वतंत्रता संघर्ष अपने पूरे चरम पर था। लोकमान्य तिलक ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ की लोगों की जागृति के लिए “सार्वजनिक गणेशोत्सव” को विचार-विमर्श को माध्यम बनाया था। यहा धार्मिक कर्तव्यों के साथ-साथ स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक मुद्दों पर भी विचार विमर्श किया जाता था। वहीं मुंबई में जब इस बार गणेश उत्सव मनाया गया तो पूरी दुनिया भर की नजर इस पंडाल पर थी, और इसका आयोजन भी बहुत ही भव्य और सुंदर तरीके से किया गया था।

गणेश जी की जन्म कथा

Ganesh chaturthi: गणेश चतुर्थी की कथा के अनुसार,एक बार माता पार्वती ने स्न्नान के लिए जाने से पूर्व अपने शरीर के मैल से एक सुंदर बालक को उत्पन्न किया और उसे गणेश नाम दिया। पार्वती जी ने उस बालक को आदेश दिया कि वह किसी को भी अंदर न आने दे, ऐसा कहकर पार्वती जी अंदर नहाने चली गई। जब भगवान शिव वहां आए ,तो बालक ने उन्हें अंदर आने से रोका और बोले अन्दर मेरी माँ नहा रही है, आप अन्दर नहीं जा सकते।

शिवजी ने गणेशजी को बहुत समझाया, कि पार्वती मेरी पत्नी है। पर गणेशजी नहीं माने तब शिवजी को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने गणेशजी की गर्दन अपने त्रिशूल से काट दी और अन्दर चले गये, जब पार्वतीजी ने शिवजी को अन्दर देखा तो बोली कि आप अन्दर कैसे आ गये। मैं तो बाहर गणेश को बिठाकर आई थी। तब शिवजी ने कहा कि मैंने उसको मार दिया। तब पार्वती जी रौद्र रूप धारण क्र लिया और कहा कि जब आप मेरे पुत्र को वापिस जीवित करेंगे तब ही मैं यहाँ से चलूंगी अन्यथा नहीं।

शिवजी ने पार्वती जी को मनाने की बहुत कोशिश की पर पार्वती जी नहीं मानी। सारे देवता एकत्रित हो गए सभी ने पार्वतीजी को मनाया पर वे नहीं मानी। तब शिवजी ने विष्णु भगवान से कहा कि किसी ऐसे बच्चे का सिर लेकर आये जिसकी माँ अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सो रही हो। विष्णुजी ने तुरंत गरूड़ जी को आदेश दिया कि ऐसे बच्चे की खोज करके तुरंत उसकी गर्दन लाई जाये। गरूड़ जी के बहुत खोजने पर एक हथिनी ही ऐसी मिली जो कि अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सो रही थी।

गरूड़ जी ने तुरंत उस बच्चे का सिर लिया और शिवजी के पास आ गये। शिवजी ने वह सिर गणेश जी के लगाया और गणेश जी को जीवन दान दिया,साथ ही यह वरदान भी दिया कि आज से कही भी कोई भी पूजा होगी उसमें गणेशजी की पूजा सर्वप्रथम होगी। इसलिए हम कोई भी कार्य करते है तो उससे पहले गणेश जी का आह्वान करते हैं।

Written By: Poline Barnard

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By Susheel Chaudhary

मेरे शब्द ही मेरा हथियार है, मुझे मेरे वतन से बेहद प्यार है, अपनी ज़िद पर आ जाऊं तो, देश की तरफ बढ़ते नापाक कदम तो क्या, आंधियों का रुख भी मोड़ सकता हूं ।