Holi Special: ब्रज की होली पूरे विश्व में मशहूर है, लेकिन हर जगह की अपनी अलग-अलग परंपरा है। काशी विश्वनाथ की नगरी वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर 350 साल से चिता-भस्म की होली खेली जा रही है। बाबा महाश्मसान समिति के अध्यक्ष और भस्म होली के आयोजक चैनू प्रसाद गुप्ता ने बताया, कि आज से करीब 16-17 साल पहले चिताओं के साथ सीधे होली नहीं खेली जाती थी। जब मंदिर में जगह नहीं बची, तो हम लोगों को बाहर निकलना पड़ा। यह हुल्लड़बाजी और बाबा का नटराजन नृत्य देख कर पूरी दुनिया चकित हो उठी। तब से हर साल रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन चिताओं पर होली खेली जानी लगी थी।
एकादशी के दूसरे दिन बाबा विश्वनाथ करते हैं तांडव
Holi Special: मणिकर्णिका घाट पर कोई चिता की राख तो कोई भस्म से नहाया हुआ था। यह होली 100 डमरुओं की निनाद के साथ शुरू हुई। इस मौके पर दुनियाभर से करीब 5 लाख श्रद्धालु मणिकर्णिका घाट पर जुटे। यह पारंपरिक उत्सव देर शाम तक चला। मान्यता है, कि मणिकर्णिका घाट पर रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन यानी आज बाबा विश्वनाथ चिताओं से निकलने वाले भूतों और औघड़ों के साथ तांडव करते हैं। इस दौरान उनका सबसे विराट अड़भंगी स्वरूप दिखता है।
चिताओं की राख को शिवभक्तों ने अपने शरीर पर लगाया
Holi Special: बाबा मसाननाथ पर 30 किलो फल-फूल, माला और 21 किलोग्राम प्रसाद चढ़ाया गया। इसके बाद शिवभक्त दौड़ते हुए चिताओं के पास पहुंचे। चिताओं की राख को अपने शरीर पर लगाया। अधजली चिताओं पर गंगाजल और थोड़ी-सी भस्म भी छिड़की गई। मान्यता है कि ऐसा करने से आत्मा को जाते-जाते शिव का प्रसाद मिलता है।