Uttarakhand: 8 दिन बीते, सुरंग में फंसे 41 मजदूर; प्रशासन के खिलाफ फूटा परिजनों का गुस्सा पढ़िए पूरी रिपोर्ट

Uttarakhand: उत्तरकाशी के सिलक्यारा गांव में निर्माणाधीन सुरंग धंसने के बाद उसमें करीब 41 मजदूरों के फंसे होने की घटना के आठ दिन बीत चुके हैं, लेकिन एक भी मजदूर को बाहर नहीं निकाला जा सका है। इसकी वजह से इन मजदूरों और परिजनों में मायूसी छायी हुई है। अंदर फंसे मजदूरों के हौसले टूट रहे हैं, तो दूसरी तरफ उनके सहकर्मियों और परिजनों का गुस्सा प्रशासन की विफलता पर फूट रहा है।

इन 4 एजेंसियों ने संभाला खुदाई का दारोमदार

Uttarakhand: पहाड़ी के ऊपर से एक ‘वर्टिकल होल’ बनाने के लिए ड्रिलिंग की जा रही है। ताजा जानकारी के अनुसार, प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने अब विभिन्न एजेंसियों के माध्यम से इन चार मोर्चों पर एकसाथ बचाव अभियान चलाने का निर्णय लिया है: –

पहले मोर्चे की जिम्मेदारी एसजेवीएनएल (सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड) उठाएगा। वे सुरंग के ऊपर 120 मीटर की 1 मीटर वर्टिकल सुरंग के लिए खुदाई करेंगे।दूसरे मोर्चे की कमान नवयुग इंजीनियरिंग संभालेगी। वे फिर से लगभग 60 मीटर लंबाई की सुरंग की खुदाई करेंगे। तीसरा मोर्चा टीएचडीसी संभालेगी। वे भी विपरीत दिशा से लगभग 400 मीटर सुरंग की खुदाई करेंगे।

चौथा मोर्चा ओएनजीसी उठाएगी। वे संभवतः नीचे से हॉरिजोंटल तरीके से सुरंग खोदेंगे। आपको बता दें कि एनएचआईडीसीएल (राष्ट्रीय राजमार्ग और अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड), ओएनजीसी (तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम), एसजेवीएनएल (सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड), टीएचडीसी और आरवीएनएल को जो जिम्मेदारी दी गई है, उसके अलावा बीआरओ और भारतीय सेना की निर्माण शाखा भी बचाव अभियान में सहायता कर रही है।

पाइपलाइन से दिया जा रहा है फूड

Uttarakhand: सुरंग में फंसे मजदूरों की जीवनरेखा बनी पाइपलाइन के जरिए अंदर फंसे मजदूरों तक पोषक फूड सप्लीमेंट, ओआरएस भेजे जा रहे हैं। इस दौरान उत्तरकाशी के जिलाधिकारी अभिषेक रूहेला, रेस्क्यू अभियान के लीडर कर्नल दीपक पाटिल और एनएचआईडीसीएल के निदेशक अंशु मनीष खलको दुर्घटना दुर्घटना स्थल पर डटे हुए हैं।

रूहेला ने कहा कि विभिन्न टेलीकॉम एजेंसियों को सिलक्यारा में संचार सुविधाएं बढ़ाने का निर्देश दिया गया है जिसके लिए टावर्स व अन्य उपकरणों की स्थापना का काम शुरू कर दिया है। जिले का आपदा प्रबंधन केंद्र भी रेस्क्यू ऑपरेशन में लगातार सहयोग कर रहा है।

रेस्क्यू ऑपरेशन के बीच टनल के बाहर 6 बिस्तरों वाला एक अस्थायी हॉस्पिटल भी तैयार किया गया है। टनल से मजदूरों के निकलने के बाद उन्हें तुरंत मेडिकल सुविधाएं मिल सकें इसलिए टनल के बाहर 10 एंबुलेंस भी तैनात की गई हैं। दरअसल, डॉक्टरों ने सलाह दी है कि टनल से निकलने के बाद श्रमिकों को मानसिक-शारीरिक मार्गदर्शन की जरूरत होगी।

एक्सपर्ट्स ने बताया श्रमिकों का हाल

Uttarakhand: मेडिकल एक्सपर्ट्स का कहना है कि लंब समय तक बंद जगह पर फंसे रहने के कारण पीड़ितों को घबराहट का अनुभव करना पड़ रहा होगा। इसके अलावा ऑक्सीजन की कमी और कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता के कारण भी उनके शरीर पर विपरीत असर पड़ सकता है। ऐसी भी आशंका है कि लंबे समय तक ठंडे और भूमिगत तापमान में रहने के कारण उनहें हाइपोथर्मिया भी हो सकता है और वे बेहोश हो सकते हैं।

मजदूरों के परिजनों में नाराजगी

Uttarakhand: इधर रेस्क्यू ऑपरेशन में हो रही देरी की वजह से मजदूरों के परिजनों और साथ काम करने वाले कर्मचारियों में नाराजगी बढ़ रही है। BBC की एक रिपोर्ट के मुताबिक टनल बनाने के प्रोजेक्ट में लोडर और ऑपरेटर का काम करने वाले मृत्युंजय कुमार कहते हैं, “हम लोग भी अंदर फंसे मजदूरों को समझाने की कोशिश कर रहे हैं।

लेकिन एक हफ्ते हो गए। वो स्वस्थ हैं लेकिन अब उनका हौसला धीरे-धीरे टूट रहा है। वो कह रहे हैं कि सूखा खाना खाकर कितने दिन जिएंगे। वो हम से पूछ रहे हैं कि हम लोग उन्हें निकलने का काम कर रहे हैं या उन्हें झूठा दिलासा दे रहे हैं।”

Written By: Vineet Attri 

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By Susheel Chaudhary

मेरे शब्द ही मेरा हथियार है, मुझे मेरे वतन से बेहद प्यार है, अपनी ज़िद पर आ जाऊं तो, देश की तरफ बढ़ते नापाक कदम तो क्या, आंधियों का रुख भी मोड़ सकता हूं ।