देश का गौरव: भट्टा मजदूर की बेटी ने तोड़ा 11 वर्ष पुराना रिकॉर्ड, भूखे पेट दौड़कर बनी सोने की चिरैया

गोल्डन गर्ल सोनम

देश का गौरव: जब हौंसले बुलंद हों तो हर लक्ष्य बहुत छोटा दिखाई पड़ता है। अपने लक्ष्य के पीछे दौड़ रही भट्टा मजदूर की बेटी के पसीने की चमक आज हीरे से भी तेज दिखाई पड़ रही है। पिता का गर्व से सीना चौड़ा हो गया है। आपको बता दें, कि इंदौर में चल रहे खेलो इंडिया यूथ गेम्‍स में 18 साल की सोनम लड़कियों की 2000 मीटर स्‍टीपलचेज में नेशनल रिकॉर्ड के साथ चैंपियन बनीं।

वह इस स्‍पर्धा में 6:45:71 सेकंड का समय निकाल कर गोल्‍डन गर्ल बन गईं। सोनम ने 11 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ा। 2012 में लखनऊ में हुई यूथ एथलेटिक्‍स चैंपियनशिप में पारुल चौधरी ने 7:06:49 सेकंड के साथ यह रिकॉर्ड कायम किया था। बुलंदशहर के एक छोटे से गांव की रहने वाली सोनम के पिता वीर सिंह ईंट भट्ठे में मजदूर हैं।

खर्चा चलाने के लिए सोनम बनीं डिलीवरी गर्ल

मां दूसरे लोगों के खेतों में काम करती हैं। परिवार में 9 लोग हैं और घर का गुजारा बेहद मुश्किल से होता है। सोनम ने 2020 में बाधा दौड़ से अपने करियर की शुरुआत की। कोच ने उनका स्‍टेमिना देखते हुए स्‍टीपलचेज में किस्‍मत आजमाने को कहा। इस बीच लॉकडाउन लग गया। बुलंदशहर से आकर दिल्‍ली में प्रेक्टिस करने वाली सोनम को खर्च चलाने के लिए डिलीवरी गर्ल का काम करना पड़ा।

देश का गौरव: आर्थिक स्थिति बेहतर न होने की वजह से सोनम को आठवीं के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी। गांव के लड़के सेना में जाने की तैयारी के लिए रनिंग करते थे। उन्‍हें देख सोनम ने भी दौड़ना शुरू कर दिया। लोकल टूर्नामेंट में जीतने पर उन्‍हें एक से दो हजार रुपये तक मिल जाते थे।

कर गुजरने की हसरत में सोनम भूखे पेट भी दौड़ी

देश का गौरव: सोनम ने पिता से कोचिंग दिलाने को कहा पर घर की हालत देख उन्‍होंने मना कर दिया। इसके बाद कोच संजीव कुमार सोनम का सहारा बने। कुछ कर गुजरने की हसरत लिए सोनम ने कई बार भूखे पेट रहकर भी दौड़ लगाई। उन्‍होंने पिछले साल असम में हुई जूनियर चैंपियनशिप में गोल्‍ड मेडल जीता था।

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By Susheel Chaudhary

मेरे शब्द ही मेरा हथियार है, मुझे मेरे वतन से बेहद प्यार है, अपनी ज़िद पर आ जाऊं तो, देश की तरफ बढ़ते नापाक कदम तो क्या, आंधियों का रुख भी मोड़ सकता हूं ।