Nitish Kumar: लालू बिना चालू इ बिहार न हुई, भाई ये बात तो सच है, तभी तो नीतीश कुमार फिर से लालू यादव के साथ जाकर मिल गए, और अब इस सियासी खेल में एक और तस्वीर सामने आ रही है वो है कांग्रेस नेता राहुल गाँधी से नितीश कुमार की मुलाकात, बिहार में भाजपा के साथ गठबंधन तोड़कर आरजेडी के साथ आए जेडीयू नेता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब 2024 के लिए हुंकार भरने लगे हैं।
Nitish Kumar: बिहार में पोस्टर से लेकर नीतीश कुमार की आगामी दिल्ली यात्रा की चर्चाएं खूब सुर्खियां बटोर रही हैं। कहा ये भी जा रहा है कि नीतीश कुमार अपनी दिल्ली यात्रा पर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल से भी मुलाकात करेंगे।
संभावना तो ये भी जताई जा रही है कि नीतीश कुमार कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक के विपक्षी दलों को एक साथ लाने की अपनी मुहिम को धार देने की कोशिश कर रहे हैं। तो क्या नितीश कुमार दही चूड़ा बहाने कोई खिचड़ी तो नहीं पका रहे है ?
Nitish Kumar: अब इन दोनों के बारे में क्या कहा जाये…एक ने अपने राजनीतिक जीवन में इतनी बार पाला बदला है कि विरोधी तंज कसते हुए उन्हें ‘पलटू’ बताते हैं। दूसरी की राजनीतिक छवि ऐसी है कि लोग उन्हें पप्पू की उपाधि दे डाली…..और अब इन दोनों की मुलाकात एक नए सियासी बदलाव की और इशारा कर रही है…
ये मुलाकात ऐसे समय में हुई है जब रविवार को ही राहुल गांधी एकजुट होकर बीजेपी को हराने की बात कर रहे थे। वहीं, सत्ता परिवर्तन के बाद नीतीश कुमार भी एकजुट होने वकालत कर रहे हैं।
Nitish Kumar: दरअसल, बिहार में jdu और बीजेपी का गठबंधन टूटने के बाद नितीश कुमार खुद को प्रधानमंत्री का चेहरा बताने में जुटे हुए हैं और इसको लेकर वो विपक्ष को एकजुट करने की कोशिशों में लगे हैं, लगता है नितीश कम्बल ओढ़कर घी पीना चाहते है।
करीब 50 मिनट तक दोनों की बातें हुई। सुनने में आया है की 2024 से पहले विपक्षी एकता के सुने-सुनाए राग पर केंद्रित थी। हाल ही में बिहार में लालू प्रसाद यादव से हाथ मिलाने वाले नीतीश कुमार इससे पहले तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर से मिल चुके हैं।
कर्नाटक वाले कुमारस्वामी से मुलाकात हुई है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मिलने वाले हैं। आगे और उन क्षेत्रीय क्षत्रपों से मिलने की योजना है, जिनकी राजनीति साँस नरेंद्र मोदी और बीजेपी की फिसलन देख कर उखड़ रही है।
चर्चा यह भी है कि चुनाव से पहले ऐसे कुछ दलों का आपस में विलय भी हो सकता है जो जनता परिवार के बिखरने से पैदा हुए हैं। इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि अब ऐसे ज्यादातर दलों में दूसरी पीढ़ी का नेतृत्व आ चुका है, जो अपने-अपने राज्यों में ही राजनीतिक जमीन तलाश रहा है।
उनकी राष्ट्रीय राजनीति की महत्वाकांक्षाओं में वह टकराहट नहीं है जो उनसे पहले की पीढ़ी में था और जनता परिवार बिखर गया। ऐसे प्रयासों को तार्किक बताने के लिए समाजवादियों के पास राम मनोहर लोहिया का एक सूत्र वाक्य भी है जो कहता है- जुड़ो, लड़ो और टूटो…
Nitish Kumar: हालांकि, नीतीश कुमार की इस मुहिम में थोड़ी मुश्किले भी नजर आ रही है। कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर फिर से स्थापित होने के लिए राहुल गांधी तैयार बैठे हैं और 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी ही प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे।
वहीं, आम आदमी पार्टी ने पहले ही अरविंद केजरीवाल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी घोषित कर दिया है और इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि नीतीश कुमार की बात न अरविंद केजरीवाल मानेंगे और न राहुल गांधी, तो ये ‘भागदौड़’ क्यों?
नीतीश कुमार तो लंबे समय से प्रधानमंत्री बनने का अरमान पाले बैठे हैं। 2013 में जब नीतीश कुमार ने भाजपानीत एनडीए गठबंधन छोड़ा था। उसकी वजह यही थी कि वह खुद को पीएम उम्मीदवार के तौर पर देख रहे थे।
कुछ महीने पहले ही जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह यादव ने भी कहा था कि नीतीश कुमार में प्रधानमंत्री बनने के सारे गुण हैं। लेकिन, वो इस रेस से बाहर हैं।हालांकि, ये तब की बात है, जब भाजपा के साथ जेडीयू की गठबंधन सरकार बिहार में थी।
लेकिन, अब स्थितियां बदल चुकी हैं, हालत बदल चुके हैं, और बीते दिनों एक कार्यक्रम के दौरान बिहार सरकार के मंत्री श्रवण कुमार ने ऐलान किया था कि नालंदा का बेटा दिल्ली के लाल किला पर झंडा फहराएगा।
इसके अलावा आरजेडी नेता तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव भी नीतीश कुमार की प्रधानमंत्री पद की दावेदारी पर मुहर लगा चुके हैं। तेजस्वी यादव ने कहा था कि अगर नरेंद्र मोदी पीएम बन सकते हैं, तो नीतीश कुमार भी बन सकते हैं।
Nitish Kumar: वहीं, तेजप्रताप यादव का कहना था कि नीतीश कुमार हमारे चाचा हैं और ये महागठबंधन सरकार है, इतना तो करेंगे ही… हालांकि, अभी भी जेडीयू की ओर से नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी को लेकर कोई आधिकारिक ऐलान नहीं हुआ है।
दरअसल, नीतीश कुमार के समर्थन में आरजेडी के अलावा और कोई नजर भी नहीं आ रहा है और वो भी कब तक साथ देगी, ये कहना भी मुश्किल है। ये अलग बात है कि बिहार में भले ही आरजेडी ने कम सीटों के बावजूद नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बना दिया हो। लेकिन, 2024 के लोकसभा चुनाव में 40 सीटों पर बंटवारा इतना आसान नहीं होगा।
वो भी ऐसे हालातो में जब नीतीश कुमार के साथ गठबंधन में कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियां भी शामिल हों। आसान शब्दों में कहा जाए, तो भले ही नीतीश कुमार पीएम मैटेरियल हों ऐसा लगता है कि उनका साथ सिर्फ आरजेडी ही देगी।
एक तरफ समाजवादी 2024 से पहले विपक्षी एकता का झुनझुना बजा रहे हैं, दूसरी ओर राहुल गाँधी 7 सितंबर 2022 से एक यात्रा शुरू करने वाले हैं। इस यात्रा का नाम रखा गया है- भारत जोड़ो यात्रा।
दिलचस्प यह है कि इस यात्रा की तुलना भी एक समाजवादी (पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर) की ही यात्रा से हो रही है। लेकिन नाम में ‘भारत’ होने के अलावा न तो इन दो यात्राओं और न उनकी अगुवाई करने वाले में समानता दिखती है।
बता दें, नीतीश कुमार की यह दिल्ली यात्रा बहुत अहम मानी जा रहा है। 2024 लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने के लिए नीतीश कुमार तमाम विपक्षी दलों के नेताओं के साथ मुलाकात करेंगे।
सोनिया गांधी, राहुल गांधी, वामपंथी पार्टी के नेताओं समेत अन्य दलों के साथ नीतीश कुमार मुलाकात करके एकजुट होने का प्रस्ताव रखेंगे और इसी कड़ी में वो आज मंगलवार 6 सितंबर को सीपीएम नेता येचुरी से मुलाकात भी की है।
हमारा स्वागत है कि वे फिर यहां आए और ये देश के प्रति एक बेहतर संकेत दिया गया है। विपक्ष की पार्टियां को एक होकर देश के संविधान को बचाना है। पहला टास्क है सबको एकजुट करना: CPI-M नेता सीताराम येचुरी, दिल्ली pic.twitter.com/GWRI20jFMM
— ANI_HindiNews (@AHindinews) September 6, 2022
वहीं नीतीश कुमार के इस दौरे पर राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने भी कटाक्ष किया है। उन्होंने कहा है कि “मिट्टी में मिल जाऊँगा किंतु भाजपा से हाथ नहीं मिलाऊँगा। गिरगिट को भी नीतीश जी ने मात दे दिया है।”
हाल के तमाम सर्वे बताते हैं कि नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता जस की तस है। भारत की आम जनता की उम्मीदों के नायक आज भी वही हैं। वहीं राहुल गाँधी आज भी इस देश की जनता की नजर में एक गंभीर राजनीतिज्ञ की छवि नहीं बना पाए हैं।
ऐसे में चाहे नीतीश कुमार का प्रयास हो या राहुल गाँधी की यात्रा, एक ऐसे झुनझुने की तरह लगती है जो भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में चुनावों से पहले शोर तो बहुत करता है, लेकिन अपनी कर्कश ध्वनि से लोगों को लुभा नहीं पाती। खैर अब 2024 के चुनाव के लिए नितीश कुमार की सवारी निकल तो पड़ी है और अब देखना ये होगा की ये सवारी क्या अपनी मंजिल तक पहुंच पाएगी ?
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