Happiness: आज के दौर में पैसा कितना महत्वपूर्ण है? ज्यादा पैसा क्यों बढ़ा देता है बेचैनी, क्यों छीन लेता है खुशहाली, क्यों उड़ा देता है नींद आज इन सवालों को लेकर आपको बतायेंगे। पैसे को लेकर हर व्यक्ति की अलग-अलग राय है। लेकिन खबर इंडिया की राय कुछ ऐसे है, कि पैसे की कमी परेशान और विचलित तो करती है लेकिन पैसे की अधिकता भी बेचैनी बढ़ा देती है। नींद चुरा लेती है।
ज्यादा पैसे वाले ज्यादा दुखी
इस रिसर्च के अनुसार ज़रूरत से कम और ज़रूरत से ज़्यादा पैसा हमारी ख़ुशहाली को कम करता है। इस निष्कर्ष से यह कहानी झूठी पड़ती है जो अक्सर सुनने को मिलती है कि ज़्यादा पैसा होंगे तो ज़्यादा ख़ुशहाली आएगी। यह रिसर्च कहती है कि मध्यम परिवारों के हिस्से में सबसे ज़्यादा ख़ुशी आती है। फ़िलहाल भारत में मध्यम परिवार की आबादी का प्रतिशत तीस प्रतिशत है जो कि कई देशों से ज़्यादा है।
Happiness: इस तीस प्रतिशत आबादी की आय पाँच लाख से तीस लाख प्रति वर्ष है। हालाँकि मिडिल क्लास की इनकम को अलग-अलग समय पर अलग-अलग ढंग से परिभाषित किया जाता रहा है, लेकिन फ़िलहाल इसे पाँच से तीस लाख सालाना माना गया है।
आजादी के सौ वर्ष होने पर 63% हो जायेगी मिडिल क्लास वालों की आबादी
भारत के लिए ज़्यादा बड़ी ख़ुशी की बात यह है कि 2047 तक मिडिल क्लास आबादी का प्रतिशत 63% तक पहुँच जाएगा। यानी आज़ादी के सौ साल बाद भारत की ख़ुशहाली दुगनी से भी ज़्यादा हो जाएगी। 2004-05 तक मिडिल क्लास आबादी देश में मात्र चौदह प्रतिशत थी। आज़ादी के वक्त तो मिडिल क्लास केवल दो प्रतिशत ही हुआ करता था। चौंकाने वाला तथ्य यह है कि देश में बावन प्रतिशत आबादी वह है जो अगले वर्षों में मिडिल क्लास होने वाली है।
Happiness: हैरत की बात यह है कि आज भी ज़्यादातर योजनाएँ, नीतियाँ या तो ग़रीबों के लिए बनाई जाती हैं या अमीरों के हित को ध्यान में रखकर बनाई जाती हैं। ग़रीबों के लिए कल्याणकारी योजनाएँ बनाने में किसी को आपत्ति नहीं हो सकती। होनी भी नहीं चाहिए। लेकिन मिडिल क्लास की सुविधाओं, सहूलियतों की तरफ़ भी ध्यान देना चाहिए। आख़िर खुशहाल देश को और खुशहाल बनाने का तरीक़ा ही क्या है?
मध्यम वर्ग को सहूलियतें मिले तो देश और ज्यादा होगा खुशहाल
Happiness: ग़रीबों के उत्थान की योजनाएँ ही उन्हें मिडिल क्लास श्रेणी में लाकर खुशहाल बनाएँगी और मध्यम वर्ग को सहूलियतें, राहतें मिलती रहेंगी तो वह और ज़्यादा खुशहाल होगा। हो सकता है वो अपने उन क़रीबियों को पकड़कर भी मध्यम वर्ग में लाने की कोशिश करेगा जो अभी पिछड़े हुए हैं या ग़रीबी वाला जीवन जी रहे हैं। वैसे हो उल्टा रहा है। हमारी सरकारें तो अक्सर यह कहते हुए सुनी जाती हैं कि मध्यम वर्ग को सहूलियत देने की ज़्यादा ज़रूरत नहीं है। वो अपना खुद देख लेगा।