Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट में एक याचिकाकर्ता को अपनी बात रखने से इसलिए रोक दिया, कि वह अपनी दलीलें हिंदी में रख रहा था। जज ने कहा, कि सुप्रीम व हाईकोर्ट में सुनवाई अंग्रेजी होती है। शंकर लाल शर्मा नाम के याचिकाकर्ता अपनी बात रख रहे थे, तभी जज उन्हें रोकने लगे।
शंकर लाल शर्मा हाथ जोड़कर अपनी बात कहते रहे। याचिकाकर्ता हिन्दी में दलीलें रख रहे थे और सुनवाई कर रहे दोनों जजों को हिंदी नहीं आती थी। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में सुनवाई सिर्फ अंग्रेजी में होती है।
जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय की बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी। शंकरलाल हाथ में कागजों का पुलिंदा लेकर कोर्ट में पहुंचे थे। याचिकाकर्ता के पास वकील नहीं था। कोर्ट में वह अपनी दलीलें खुद ही दे रहे थे।
Supreme Court: जजों ने कहा कि आप जो भी कह रहे हैं हमें कुछ समझ नहीं आ रहा है। इस कोर्ट की भाषा हिंदी नहीं है। याचिकाकर्ता बोलते रहे, क्योंकि उन्हें अंग्रेजी समझ नहीं आ रही थी। इस पर जज हैरान नजर आने लगे।
हाल ही में ऐसे कई केस सामने आए हैं, जिनमें हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता या फरियादी खुद ही पेश हो जाते हैं। ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि उन्हें कोर्ट में मिलने वाली मुफ्त कानूनी सहायता के बारे में नहीं पता होता। दरअसल, साल 1976 में संविधान के 42वें संशोधन में अनुच्छेद 39क को जोड़ा गया।
सुप्रीम कोर्ट में होती है अंग्रेजी में सुनवाई..
Supreme Court: संविधान के अनुच्छेद 348 (1) के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की कार्यवाही की भाषा अंग्रेजी है। भाषा को बदलने का अधिकार खुद कोर्ट के पास भी नहीं है। हालांकि संसद चाहे तो भाषा को बदला जा सकता है।