Vijay Diwas: कोलकाता (पश्चिम बंगाल): वर्ष 1971 को आज के दिन 16 दिसंबर को भारत ने पाकिस्तान को युद्ध में हराकर पाकिस्तान को तोड़ते हुए बांग्लादेश बनाने में अहम भूमिका अदा की थी। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने विजय दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर श्रद्धांजलि दी।
Vijay Diwas: टाइगर डिवीजन के जीओसी मेजर जनरल गौरव गौतम ने विजय दिवस के अवसर पर जम्मू में बलिदान स्तंभ पर पुष्पांजलि अर्पित की। भारत पाकिस्तान युद्ध की ऐतिहासिक विजय के 52 साल पूरा होने पर भारतीय सेनाओं की पूर्वी कमान ने सैन्य टैटू प्रस्तुत किया।
#WATCH कोलकाता (पश्चिम बंगाल): वर्ष 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध की ऐतिहासिक विजय के 52 साल पूरा होने पर भारतीय सेनाओं की पूर्वी कमान ने सैन्य टैटू प्रस्तुत किया। (15.12) pic.twitter.com/sWdJzUfgrV
— ANI_HindiNews (@AHindinews) December 16, 2023
क्यों मनाते हैं विजय दिवस?
Vijay Diwas: 1971 में पाकिस्तान और भारत के बीच भीषण युद्ध हुआ था। इस युद्ध में पाकिस्तान घुटने पर आ गया था। पाकिस्तानी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी ने अपने 93 हजार सैनिकों के साथ भारतीय पूर्वी सैन्य कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था।
16 दिसंबर को ही बांग्लादेश का निर्माण हुआ था
Vijay Diwas: दरअसल, 16 दिसंबर की शाम को ही जनरल नियाजी ने भारतीय पूर्वी सैन्य कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने आत्मसमर्पण के कागजों पर हस्ताक्षर किए थे। इस जंग में भारतीय आर्मी को भी भारी नुकसान हुआ था। हमारे भी कई अधिकारियों के साथ सैनिक ने भी शहादत दी थी। पूरा देश आज के दिन ही अपने शहीदों को याद करते हुए श्रद्धा सुमन अर्पित करता हैं।
Vijay Diwas: आत्मसमर्पण के समय भारत के मात्र तीन हजार सैनिक बचे थे। लेकिन, हमारे जवानों का जोश इतना हाई था कि भारत का एक जवान पाकिस्तान के 10 सैनिकों पर भारी पड़ रहा था। पाकिस्तानी फौजी इतने ज्यादा खौफजदा थे कि पाकिस्तानी सेना के कमांडर के पास 26 हजार से ज्यादा सैनिक होने के बावजूद भी नियाजी के कमरे में जरनल अरोड़ा के समक्ष पाकिस्तानी कमांडर ने आत्मसमर्पण के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर दिए थे।
रो पड़े थे नियाजी
Vijay Diwas: आत्मसमर्पण के दौरान नियाजी इतने दुखी थे कि उनके ऑखों में आंसू आ गए थे और उनकी इतनी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वो जनरल अरोड़ा से ऑखें भी मिला सकें। रिपोर्ट के मुताबिक, स्थानीय लोग नियाजी को जिंदा न छोड़ने की अपील कर रहे थे। लेकिन भारतीय सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने नियाजी के साथ वैसा बर्ताव किया जैसा किसी भी युद्ध बंदी से होना चाहिए था। उनको सुरक्षित पाकिस्तान वापस भेज दिया। भारत की जीत की खबर जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पता चली ओर उन्होंने लोकसभा में युद्ध में भारत की जीत की घोषणा की तब पूरे सदने के साथ ही देश के लोग जश्न में डूब गए थे।
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