छावला कांड: सु्प्रीम कोर्ट ने तीनों दोषियों को सबूतों के अभाव में किया बरी, पिता के आंखों में छलके आंसू, कहा-“हमारे केस में इंसाफ बिक गया”

Supreme Court

छावला कांड: सोमवार 7 नवंबर को सर्वोंच्च न्यायालय ने साल 2012 में हुए दिल्ली छावला गैंगरेप के तीनों दोषियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को पलट दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि “अभियोजन आरोपियों के खिलाफ अपराध से जुड़े ठोस साक्ष्य पेश करने में असफल रहा, इसीलिए इस अदालत के पास जघन्य अपराध से जुड़े इस मामले में आरोपियों को बरी करने के सिवा और कोई विकल्प नहीं बचा है।”

छावला कांड: सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में टिप्पणी करते हुए कहा कि “यह सच हो सकता है कि यदि जघन्य अपराध में शामिल अभियुक्त को सजा न सुनाई जाए या उनके बरी होने पर साधारण रूप से समाज में और खासतौर पर पीड़ित के परिवार के लिए एक तरह का दुख और निराशा पैदा हो सकती है।”

सर्वोच्च अदालत ने ये भी कहा कि “हालांकि कानून अदालतों को नैतिक या अकेले संदेह के आधार पर दोषियों को सजा देने की इजाजत नहीं देता है। कोई भी दोषसिद्धि केवल फैसले का विरोध या निंदा की आशंका के आधार पर नहीं होनी चाहिए। अदालतों को हर मामले का फैसला किसी भी तरह के बाहरी नैतिकता या दबाव से प्रभावित हुए बिना, कानून के मुताबिक कड़ाई से उनके अपने गुण-दोष के आधार पर करना चाहिए”…

छावला कांड: सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से जिसको सबसे ज्यादा सदमा लगा वो पीड़िता का ही परिवार है। क्योंकि सबसे ज्यादा प्रभाव भी इस परिवार पर ही पड़ा है। तीनों दोषियों के बरी होने के आदेश को सुनते ही पिता को ऐसा सदमा लगा कि जैसे उन पर बज्रपात ही हो गया हो।

न्याय के मंदिर से आए इस फैसले ने जैसे पिता को निशब्द ही कर दिया। उसके पिता को समझ ही नहीं आ रहा था कि सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश पर क्या कहे?

जब पिता से मीडिया ने प्रतिक्रिया मांगी तो उनकी आँखों से झर-झर आंसू बह रहे थे। रोते हुए पिता ने कहा कि “ऐसा लग रहा है जैसे हमारे केस में इंसाफ बिक गया”…  और उन्होंने कहा कि “सबसे ज्यादा सदम अनामिका(बदला नाम) की मां को लगा है।”

छावला कांड: उन्होंने ये भी कहा कि “10 साल से न्याय की उम्मीद कर रहे पिता को जब निराशा हाथ लगी तो जैसे अंतर्मन की पीड़ा खुद ब खुद बाहर आ गई। पिता ने लड़खड़ती जुबान से कहा कि ‘समझ ही नहीं आ रहा कि फैसला पलट कैसे गया।”

पिता ने ये भी कहा “क्या निचली अदालत, दिल्ली हाई कोर्ट गलत थे या अब देश की सर्वोच्च अदालत ने हमारे साथ न्याय नहीं किया?  और साथ ही ये भी कहा कि “जैसे-जैसे रात हो रही है, वैसे-वैसे मन और फीका होता जा रहा है…”

आपको बता दें कि “मृतका के पिता दिल्ली में ही सिक्योरिटी गार्ड का काम करते हैं। पर उनकी कमाई 4 सदस्यों वाले परिवार के भरण पोषण के लिए काफी नहीं पड़ती। इसलिए बेटी ने ग्रेजुएशन करने के बाद प्राइवेट जॉब पकड़ ली। इनकी एक बेटी और है, जो कंप्यूटर कोर्स कर रही है। दर्दनाक अनुभव के साथ घोर आर्थिक संकट से गुजर रहे इस परिवार की निराशा का दूसरा कारण मदद न इंसाफ मिलना भी है।”

छावला कांड: ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर देश की सर्वोच्च अदालत ने इतना बड़ा क्राइम करने वाले दरिंदों को किस आधार पर बरी कर दिया?  अगर उन तीनों ने अनामिका के साथ उस काली रात को रेप नहीं किया था तो आखिर वो कौन थे?

जिन्होंने इस रेप को अंजाम दिया था और सबसे बड़ी बात तो ये है कि कोर्ट ने ये नहीं बताया कि अगर ये तीन दोषी नहीं थे तो वो कौन थे जिन्होंने इस जघन्य अपराध को अंजाम दिया था? आज भी देश के सामने भी ये ही यक्ष प्रश्न है की अनामिका का कातिल है कौन?

सुप्रीम कोर्ट ने तीनों दोषियों को ये कहते हुए बरी कर दिया। उन्होंने अपने आदेश में कहा कि  ये सबित तो होता है कि साल 2012 में अनामिका (बदला हुआ नाम) का रेप तो जरूर हुआ है लेकिन अभियोजन पक्ष ये साबित करने में नाकाम रहा कि इन तीनों ने ही रेप के साथ जघन्य अपराध किया है।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से सबसे ज्यादा सदमा पीड़िता के पिता के साथ ही उसकी मां को लगा है। नाउम्मीदी से भरी पीड़ित की मां ने जनता से अपील करते हुए कहा कि “सारा समाज इकट्ठा हो और इन्हें (रवि, राहुल और विनोद, जिन्हें मामले से बरी किया गया है) सजा दिलाए। हम तो अदालतों के धक्के खाते-खाते बूढ़े हो गए और अंत में खाली हाथ रह गए। हमारे साथ जो आया, वो बस मुसाफिर की तरह आया। जुड़कर कोई साथ न चला। इसलिए हमारा इंसाफ अधूरा रह गया।”

भारी मन से पीड़िता की मां ने  कहा कि “बहुत दुखद खबर है। हमें समझ ही नहीं आ रहा कि क्या बोलें। अब तो हमें शर्म आ रही है। एक झटका मुझे तब लगा था, जब मैंने अपनी बेटी के ‘तीनों दोषियों’ को अदालत में देखा था। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले से जो झटका लगा, वो उससे भी बड़ा लग रहा है।”

छावला कांड: दिल्ली हाई कोर्ट ने इस मामले पर क्या कहा था?

छावला गैंगरेप केस जब दिल्ली हाई कोर्ट पहुंचा था तब इस पर कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए तीनों दोषियों के खिलाफ फांसी की सजा को बरकरार रखा था। निचली अदालत ने इस केस को ‘दुर्लभ से दुर्लभतम’ बताते हुए तीनों आरोपियों को 2014 में मौत की सजा सुनाई थी। बाद में दिल्ली हाई कोर्ट ने भी तल्ख टिप्पणी करते हुए फांसी की सजा को बरकरार रखा था। हाई कोर्ट ने कहा था कि ये वे हिंसक जानवर हैं, जो सड़कों पर शिकार ढूंढते हैं।

लड़की के साथ उस रात क्या हुआ था

पीड़िता के साथ निर्भया जैसी दरिंदगी की गई थी। जांच में पता चला था कि लड़की से गैंगरेप के बाद उसके शरीर को सिगरेट और गर्म लोहे से दागा गया था। चेहरे और आंखों पर तेजाब डाला गया था।

पुलिस पक्ष के मुताबिक, पीड़िता मूल रूप से उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल की रहने वाली थी। दिल्ली में वह छावला इलाके में रहती थी। घटना वाले दिन वह गुड़गांव के साइबर सिटी इलाके से काम के बाद लौट रही थी, तभी घर के पास तीन लोगों ने कार में उसे अगवा किया। लड़की घर नहीं लौटी तो माता-पिता ने थक हार कर गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवाई।

तीन दिन बाद लड़की का शव सड़ी-गली हालत में हरियाणा के रेवाड़ी के पास मिला। पुलिस ने तीन लोगों रवि, राहुल और विनोद को गिरफ्तार किया था। बताया ये भी गया था कि लड़की ने रवि का शादी का प्रस्ताव खारिज कर दिया था और जिसके बाद उसने दोस्तों के साथ मिलकर घटना को अंजाम दिया।

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By Atul Sharma

बेबाक लिखती है मेरी कलम, देशद्रोहियों की लेती है अच्छे से खबर, मेरी कलम ही मेरी पहचान है।